'ऋ' के प्रयोग संबंधी नियमों पर प्रकाश डालिए ?
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विवरण ऋ देवनागरी वर्णमाला का सातवाँ स्वर है।
भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह मूर्धन्य, ह्रस्व, अग्र, अवृत्तमुखी, स्वर है तथा घोष ध्वनि है।
अनुनासिक रूप ‘ऋ’ का अनुनासिक रूप नहीं होता।
मात्रा ृ (जैसे- कृ, गृ, मृ, पृ)
व्याकरण [ संस्कृत ऋ+क्विप् ] स्त्रीलिंग (देव-माता) अदिति, निंदा, उपहास।
संबंधित लेख अ, आ, ई, ओ, औ, ऊ, ए, ऐ, अं, अ:
- अन्य जानकारी सामान्य हिंदी भाषी ‘ऋ’ को ‘र’ के समान ही बोलता है। फिर भी, ऋ-युक्त संस्कृत तत्सम शब्द हिंदी में अपने मूल रूप में ही लिखे जाते हैं और लिखे भी जाने चाहिए।
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