rid ki haddi ka saransh
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रीढ़ की ह़ड्डी' नाटक का नाम लेखक ने बिलकुल सही दिया था। मनुष्य के जीवन में मान-सम्मान उसके लिए अति आवश्यक है। मान-सम्मान ही उसे समाज में गर्व से खड़ा रखता है व समाज के सम्मुख स्थान दिलाता है, उसका मान-सम्मान उसकी रीढ़ की हड्डी के समान होता है। उमा ने शंकर के इसी मान-सम्मान विहिन जीवन पर प्रहार किया है। शंकर एक बिगड़ा हुआ लड़का था। पढ़ाई के स्थान पर लड़कियों के होस्टल में घुस जाना व वहाँ पर अपमानित होकर भगा दिया जाना शर्म की बात थी। एक लड़की ऐसे पति की कल्पना भी नहीं कर सकती थी। उमा ने शंकर के इसी तथ्य को उजागर कर उसे रीढ़ की हड्डी से विहिन बताया है। इस नाटक के नाम की सार्थकता इसी बात से सिद्ध होती है।
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