Accountancy, asked by dikshalakshmi2228, 1 year ago

ऋणपत्रों के मोचन को ध्यान में रखते हुए ऋणपत्र निर्गम की विभिन्न शर्तों की व्याख्या कीजिएl ?

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Answered by PiyushSinghRajput1
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ऋणपत्र या डिबेंचर एक तरह का प्रमान पत्र है जो जानकारी देता है कि कंपनी निवेशक को एक निश्चित राशि देगी। इस भुगतान में मूल राशि पर ब्याज और मैच्योरिटी होने पर पूंजी मिलती है। डिबेंचर मुख्यत: तीन प्रकार के होते हैं।

पूर्ण परिवर्तनीय ऋणपत्र (फुली कंवर्टबिल डिबेंचर)

इसमें निवेशक को ब्याज शुरुआती स्तर पर मिलता है। इस स्थिति में निवेशक को मूल राशि लौटायी नहीं जाती, सिवाय इसके कि निवेशक कंपनी में शेयरधारक न हो।

अपरिवर्तनीय ऋणपत्र (कंवर्टबिल डिबेंचर)

इन डिबेंचरों को इक्विटी या शेयरों में नहीं बदला जा सकता। यह मैच्योरिटी होने पर निवेशक को प्रिंसिपल अमाउंट अदा करते हैं।

आंशिक परिवर्तनीय ऋणपत्र (पार्शियली कंवर्टबिल डिबेंचर)

इए वो डिबेंचर होते हैं जो मैच्योरिटी के बाद मूल राशि के साथ कुछ इक्विटी और शेयर भी देते हैं।

नॉन-कंवर्टबिल डिबेंचर दो विकल्प हैं। पहला क्यूमुलेटिव ब्याज और दूसरा दैनिक ब्याज का विकल्प। क्यूमुलेटिव विकल्प में मैच्योरिटी के बाद ब्याज दर और प्रिंसिपल अमाउंट मिलता है। इससे पहले कोई भुगतान नहीं मिलती। वहीं रोजाना ब्याज के विकल्प में निवेशक को ब्याज समय-समय पर मिलता रहता है। यह त्रैमासिक भी हो सकता है और वार्षिक भी। यदि आप ऐसी निधि की तलाश में है जो आपकी दैनिक की आर्थिक आवश्यकताएं पूरी करे तो वार्षिक विकल्प बेहतर है। मैच्योरिटी तक रखने पर इसकी आय लांग टर्म कैपिटल गेन में आती है। यदि आप टैक्स ३० प्रतिशत वाले टैक्स ब्रैकेट में है तो आपके लिए क्यूमुलेटिव विकल्प बेहतर रहेगा।

Answered by hellominigarg
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ऋणपत्र निर्गम की विभिन्न शर्तें:

• मोचन पर पूर्ण प्रीमीयम भविष्य में कंपनी की देय ज़िम्मादारी होती है। इसे ऋण पत्रों के मोचन तक ‘सुरक्षित ऋण’ के रूप में दर्शाया जाएगा।

• ऋण निर्गम पर हानि खाते को पूंजी हानि की संज्ञा दी जाती है। इसे धीरे धीरे प्रतीशत प्रीमियम या लाब व हानि खाते के खिलाफ बट्टे में डाल दिया जाता है।

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