Hindi, asked by vanshrana257, 9 months ago

ऋषि के वचनों को सुनकर व परशुराम के क्रोध की अवमानना करते हुए लक्षमण ने मुस्काते हुए कहा कि बचपन में हमने ऐसे बहुत से धनुष तोड़े हैं पर कभी किसी ऋषि ने ऐसा क्रोध नहीं किया - किन पंक्तियों का अर्थ है - *

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नि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने॥ बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाई॥

ख. रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार्।

ग. धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार॥

घ. सो बिलगाइ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा॥​

Answers

Answered by Priatouri
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बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाई॥

Explanation:

  • दी गई पंक्तियों "बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाई॥"के माध्यम से लक्ष्मण जय परशुराम जी पर व्यंग्य कसते हुए कहते हैं कि बालपन में उन्होंने ऐसे कई धनुष तोड़े हैं परंतु कभी उन पर कभी किसी ने क्रोध नहीं किया।
  • परशुराम जी के शिव धनुष टूट जाने पर पर क्रोधित होने पर लक्ष्मण जी ने अपने तर्क में कहा कि यह असाधारण शिव धनुष भी उन्हें साधारण धनुष की भांति ही लगा।
  • श्री राम जी को तो यह धनुष केवल एक नए धनुष की भांति लगा और उनके छूने भर से ही यह धनुष टूट गया।
  • क्योंकि उन्होंने बालपन में भी बहुत से धनुष तोड़े हैं इसलिए यह धनुष भी ऐसे ही टूट गया होगा।

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