ऋतु स्त्राव किसे कहते हैं
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निषेचन के न होने की अवस्था में इस परत की आवश्यकता नहीं रहती, इसलिए यह परत टूट कर धीरे-धीरे योनि मार्ग से रुधिर एवं म्यूकस के रूप में निष्कासित होती है। जो रक्त कोशिकाएं भित्ति में फट जाती हैं उनका रक्तस्त्राव होता है जिसमें रक्त के साथ-साथ ऊतक तथा बहुत सारा पानी भी होता है इसे ऋतुस्त्राव कहते हैं
लेखक परसाई द्वारा लिखित पाठ ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ में प्रेमचंद जैसे महान साहित्यकार, जिसे ‘युग प्रवर्तक’, ‘महान कथाकार’, ‘उपन्यास सम्राट’ आदि के रूप में जाना जाता है, की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी न थी। उनकी फटे जुते से अँगुली बाहर निकल आई थी। कुछ ऐसी समान स्थिति लेखक परसाई के जूते की भी थी। उनके जूते का अँगूठे के नीचे का तला फटा था, जिससे अँगूठा जमीन में रगड़कर घायल हो जाता था। इस स्थिति में उसके जूते का तला निकलकर उसके पूरे पंजे को घायल कर देता था।