Hindi, asked by pamayyajeeva7849, 11 months ago

Role of education in environment protection and conservation in hindi

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Answered by spinner1
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पर्यावरण संरक्षण और विकास का आपस में बहुत सुग्रथित सम्बन्ध है। वो इसलिए क्यूंकि शायद हमारे विकास के मौजूदा प्रतिमान ने पर्यावरण को बहुत नुक्सान पहुचाया है। पर मेरे विचार से पर्यावरण का संरक्षण भी उस हवाई विकास के जंजाल में हमको फसाने का एक नया तरीका मात्र है, असल ज़रूरत है पर्यावरण की रक्षा करने की । हमारी प्राथमिकता इलाज नहीं उस समस्या को रोकने की होनी चाहिए । पर्यावरण संरक्षण और मजूदा विकास में इसकी भूमिका को समझने के लिए हमें टिकाऊ विकास के पर्यावरणीय, सामाजिक और अर्थशास्त्रीय मॉडलों में GDP आधारित मॉडल को समझना भी ज़रूरी है जिसे बाद के खण्डों में विस्तृत रूप से समझाने का प्रयास किया गया है । इससे पहले पर्यावरण संरक्षण एवं विकास पर आधारित कुछ तथ्यों पर विचार कर लेना ज़रूरी है।

भारत: एक प्रकृति सेवक से विकास शील देश तक

सन 1730, ग्राम खेजरली-जोधपुर, राजस्थान में बिश्नोई प्रजाति के 363 पुरुष, महिलाएं एवं बच्चों ने पेड़ों की रक्षा करते हुए राजा के सिपाहिओं के हाथों अपनी जान गवाई। पर्यावरण की रक्षा के लिए ये वाक्या सम्पूर्ण विश्व के लिए एक प्रेरणास्रोत बनी और 19वीं सदी में इसी सोच ने भारत में ‘वन सत्याग्रह’ और ‘चिपको आंदोलन’ एवं कई देशों में ‘ट्री हग्गर’ के रूप में प्रकृति की रक्षा में जन आंदोलनों को मजबूती दी। हमारी सभ्यता प्राचीन काल से ही प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठा कर चलने वाले समाजों में से एक है, जिसने प्रकृति की रक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में रखने से भी तनिक नहीं सोचा। शायद उनको ये ज्ञात था कि प्रकृति के संतुलन में ही मानव जाती की भलाई और विकास है। पर्यावरणीय अवनति के प्रति असहिष्णुता भारत के प्राचीन लेखों में शामिल है, जिसमें मानव धर्म शास्त्र (मनु स्मृति) इस नज़रिये से विश्व भर में चर्चित है। हमारे आधुनिक युग के क़ानून जैसे पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 , वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 इत्यादि भी इन्हीं शास्त्रों के ही रूप लगते है।

इस बात से भी हम इंकार नहीं कर सकते कि वैश्वीकरण के युग ने न सिर्फ हमारे पर्यावरण को प्रदूषित किया बल्कि इससे हमारी जीवन शैली एवं हमारी संस्कृति भी प्रभावित हुई। जिस प्रकृति को हमने देवी देवताओं के रूप में सदिओं से पूजा आज हमने उसी को प्रदूषण से एवं प्रकृति ध्वंसी ‘टेक्नोलॉजी’ से पूरी तरह नष्ट किया या कर रहे है। हमारे सामने कुछ ऐसी चुनौतियाँ आई जिसको पैदा तो हमने किया लेकिन वो सब बहुत नया था, और जब तक हमारे पास इन पार्श्व प्रभावों को समझने की काबिलियत आई, बहुत देर हो चुकी थी। हम ऐसे मुकाम पर थे जहाँ से वापस जाना बहुत बड़ा जोखिम हो सकता था या फिर ऐसा समझ लीजिये कि वापसी का रास्ता बहुत कष्टकर था क्यूँकि हम उन सुविधाओं के आदि हो चुके थे और शहरी जीवन शैली से पाषाण युग में जाना शायद कोई पसंद नहीं करता। दूसरी समस्या ये भी थी की किसी ने भी इन बड़े पार्श्व प्रभावों के बारे में कभी कल्पना नहीं की थी क्यूंकि उस समय हमारा विज्ञान उतना विकसित नहीं हुआ था। आज ग्लोबल वॉर्मिंग या जल वायु परिवर्तन जैसे समस्याओं से सम्पूर्ण विश्व प्रभावित है। बांधों और बैराजों के निर्माण से जहाँ हमने बिजली पैदा की वहीँ हमने अपने नदिओं का गला घोंट दिया और उसमें रहने वाले मछलियाँ और अन्य जीवों को ख़त्म ही कर दिया । जिन जंगलों से हमारे आदिवासी भाई सैकड़ों सालों से अपना जीवन यापन करते आये है, हमने उनसे वो भी छीनना शुरू किया और उनको अपने पुश्तैनी जीवन एवं घर से जड़ से ही उखाड़ना शुरू कर दिया। जिस कृषि प्रधान देश में नदिओं के पानी द्वारा सिंचाई एवं उसके द्वारा बाढ़ में लाये गए उपजाऊ मिटटी से शुद्ध खेती होती थी आज वो पानी उद्योगों और शहरों के विकास के लिए मोड़ा जा रहा है, मिटटी के उपजाउता को बढ़ाने के लिए फ़र्टिलाइज़र और तमाम तरह के केमिकल छिड़के जा रहे है। इससे खेती तो बढ़ी लेकिन लोग कैंसर और कई अपंग बनाने वाले बिमारिओं के शिकार हुए, हमारा भूगर्भ जल स्तर इतना गिर गया कि हमारे बोरवेल पानी से साथ ज़हर उगलने लगा और पंजाब जैसे कृषि प्रधान राज्यों में किसान कैंसर जैसे गंभीर बिमारिओं से जूझ रहे है । बिजली भी मिली लेकिन शुद्ध हवा, शुद्ध जल एवं अप्रतिकार्य पर्यावरण प्रभाव के बदले में। और इन सब बातों का साक्षात प्रमाण हमें भारत के हर क्षेत्र में देखने को मिलता है , वैज्ञानिक रिपोर्ट भी मिलते है।

Answered by dackpower
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पर्यावरण संरक्षण और संरक्षण में शिक्षा की भूमिका

Explanation:

पर्यावरण शिक्षा एक बहु-विषयक क्षेत्र है जो जीव विज्ञान, पारिस्थितिकी, भूगोल, पृथ्वी विज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान, गणित और अन्य जैसे विषयों को एकीकृत करता है। यह सिखाने का लक्ष्य है कि प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र कैसे कार्य करता है और सभी के रहने के लिए एक स्थायी वातावरण बनाने के लिए इसे प्रभावी ढंग से कैसे प्रबंधित किया जा सकता है।

पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र पर मानव प्रभाव के कारण पर्यावरण का निरंतर क्षरण हुआ है जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक जलवायु परिवर्तन हुआ है। यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) का कहना है कि भविष्य के वैश्विक जीवन की गुणवत्ता के वैश्विक विकास की सुरक्षा के लिए, व्यापक पर्यावरण जागरूकता को बढ़ाना होगा। पर्यावरण शिक्षा लोगों को यह जानने में मदद कर सकती है कि उनके कार्यों का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है और इसे कैसे कम से कम किया जा सकता है।

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पर्यावरण प्रदूषण उपसहार​

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