Role of education in social diversity and inequality in hindi
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हमारी सम्पूर्ण प्रकृति तमाम विविधताओं से भरी पड़ी है | भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवों, पेड़-पौधों, नदी नालों, स्थलाकृतियों आदि के रूप में यह विविधता ही प्रकृति का सौंदर्य है | हमारा समाज भी भिन्न-भिन्न रंग, रूप, क्षमता, प्रकृति, भाषा, वेशभूषा, खान-पान, आचार-व्यवहार, आस्था-मान्यता, धर्म-संप्रदाय आदि से संबंधित विविध व्यक्तियों व समुदायों से समृद्ध है | यही विविधता हमारे समाज की खूबसूरती है | हमारे समाज में विद्यमान विभिन्न समुदाय व लोगों की क्षमताएँ व खासियत अलग-अलग हैं | एक लोकतांत्रिक सत्ता व व्यवस्था की यह भूमिका होनी चाहिए कि इन विविध जनों व समुदायों के विकसने व एक बेहतर जीवन जीने की व्यवस्थाओं को बिना भेद-भाव के सुलभ कराए | परन्तु हमारे समाज ने मानव सभ्यता के विकास क्रम में सत्ता व व्यवस्था के भिन्न भिन्न रूपों को देखा व उन वर्चस्ववादी ताकतों के अनुरूप जीने को बाध्य हुआ | सहस्त्राब्दियों तक सुविधाविहीन, धन, प्रतिष्ठा व ताकत से महरूम एक बड़े वर्ग को सुविधायुक्त, बेहतर व सम्मानित जीवन जीने की व्यवस्थाओं से दूर रखा गया | सुविधाओं से वंचित किए जाने का आधार बना जन्म का कुल, लिंग, निवास स्थान, भाषा, आस्था व मान्यताएँ, धर्म व सम्प्रदाय आदि | ये आधार जो मूल रूप में विविधताएँ हैं के कारण किसी वर्ग व व्यक्ति विशेष को विकसने के लिए जरुरी मौलिक सुविधाओं से वंचित किए जाने से ही असमानता जन्म लेती है | इस प्रकार असमानता सत्ता व वर्चस्ववादी ताकतों के प्रत्यक्ष या परोक्ष व्यवहार द्वारा विकास के साधनों के असमान वितरण से उत्पन्न हुई वह स्थिति है जिसमें एक ही समाज में भिन्न-भिन्न जन व समुदाय विकास की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में रहने को बाध्य होते हैं | दूसरे ढंग से देखा जाय तो ‘असमानता’ सत्ता व वर्चस्ववादी ताकतों का व्यवहार भी है और समाज की स्थिति भी | विकास हेतु आवश्यक सुविधाओं से वंचित होने तथा इस असमानता के व्यवहार के कारण व्यक्ति व समुदाय के अंदर वंचन का भाव जन्म लेता है और वह स्थिति जिसमें वंचित व्यक्ति जीता है ‘वंचना’ के रूप में जाना जाता है | सूक्ष्मता से देखा जाए तो वंचन, व्यक्ति तथा समुदाय दोनों के स्तर परदो प्रकार से हो सकता है । व्यक्ति तथा समूह के अन्दर वंचन का भाव इस कारण से भी हो सकता है कि वह जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए संघर्ष कर रहा हो और इस संघर्ष के बावजूद भी उनसे वंचित हो; या शारीरिक तथा मानसिक रूप से इतना अक्षम हो कि सामान्य सुविधाओं के उपलब्ध रहने के बावजूद भी उसका उपयोग न कर पाए । इस प्रकार के वंचन को वास्तविक वंचन (Absolute Deprivation) कहा जा सकता है। वंचन का दूसरा भाव इस कारण से भी उत्पन्न हो सकता है कि व्यक्ति या समूह किसी दूसरे व्यक्ति या समूह की अपेक्षा भौतिक संसाधनों, सामाजिक प्रतिष्ठा तथा अन्य किसी भी कारण से अपने आपको वंचित महसूस कर रहा हो । वंचन के इस भाव को सापेक्षिक वंचन (Relative Deprivation) कहा जाता है ।