roti aur swadintha ka kay sambandh hai
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रोटी और स्वाधीनता - रामधारी सिंह 'दिनकर'
स्वातंत्र्य रूह की ग्रीवा में अनमोल विजय की माला है। शासन की कौन बिसात, पाँव विधि की लिपि पर धर सकता है। मालूम किसी को नहीं अनागत नर की दुविधाएं सारी। नर के विवेक का शत्रु, मनुज की मेधा का संहारक है।
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