RSS
or
BJS
ka kya snbndh ha
संबव्य है
Answers
Answer:
etksktsktltsltsmgdmfzkzktJr
हाल के दिनों में केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के कुछ नेताओं, एकाध मंत्रियों और हिंदू संगठनों से जुड़े कतिपय नेता-कार्यकर्ताओं के बयानों और उन पर भाजपा के जिम्मेदार नेताओं की प्रतिक्रिया न आने से ऐसी धारणा बनी कि नरेंद्र मोदी सरकार हिंदू संगठनों के कथित एजेंडा थोपने के प्रयासों को मूक भाव से स्वीकार कर रही है। कुछ घटनाओं और बयानों के आधार पर तुरत-फुरत निष्कर्ष निकालने की डॉन क्विकजोट मानसिकता और इनको लेकर चली धुआंधार टीवी पैनल चर्चाओं ने इस धारणा को और हवा दी। कुछ प्रमुख बातें थीं ः आगरा में कुछ मुस्लिम परिवारों की हिंदू धर्म में ‘घर वापसी’ (जो असल में हुई ही नहीं), राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े भाजपा के उत्तर प्रदेश के एक सांसद का दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ‘प्रत्येक हिंदू परिवार से चार संतानों को जन्म देने’ की अपील करने वाला बयान, मोदी सरकार में मंत्री, उत्तर प्रदेश की एक उग्र दलित नेत्री का ‘रामजादे-...’ वाला भाषण, दिल्ली के कुछ चर्चों और एक मिशनरी स्कूल में हुई तोड़फोड़, आगजनी और चोरी की घटनाएं (जो आश्चर्यजनक ढंग से दिल्ली चुनाव के बाद रुक गई हैं!) और सबसे ताजातरीन जम्मू-कश्मीर में भाजपा-पीडीपी की आसन्न सरकार के न्यूनतम साझा कार्यक्रम में विवादास्पद अनुच्छेद 370 और सशस्त्र बल को विशेष अधिकार देने वाले कानून के बारे में कोई समझौता न करने की भाजपा को दी गईं कथित चेतावनियां।
.केंद्र में यह भाजपा-नीत दूसरी सरकार है और इसमें भाजपा का बहुमत है, जिसका सबसे बड़ा कारण निर्णयक्षम नेता मोदी की आसमान छूती लोकप्रियता रहा। मोदी और उनकी सरकार के अनके मंत्रियों समेत भाजपा का बहुतायत नेता-कार्यकर्ता वर्ग भारत के उस सनातन राष्ट्रीय विचार का पक्षधर माना जाता है, जिसका पोषण-संवर्धन दुनिया का सबसे व्यापक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले नौ दशक से अधिक समय से कर रहा है। संघ को राष्ट्रीय हितों और विचारों की पैरवी करने वाले सभी संगठनों का उत्स मान लिया गया है। कई विश्लेषक संघ को भाजपा का वैचारिक परामर्शदाता घोषित करने जैसा सरलीकरण भी करते हैं।
हालांकि भाजपा और उसके पूर्वावतार जनसंघ ने 1967 की संविद सरकारों में सत्ता संभालने से लेकर अब तक अपना दलगत विचार, नीति-रीति निर्धारित करने और शासन- प्रशासन व्यवस्था चलाने की सामर्थ्य और क्षमता बराबर साबित की है। लेकिन भाजपा के सत्ता में आते ही संघ-भाजपा के संबंधों को लेकर अंदेशे उठते हैं और भाजपा के प्रतिद्वंद्वी दलों से लेकर उसके वैचारिक विरोधी तक भाजपा सरकार के संघ के ‘दबाव’ में काम करने के आरोप-अभियान में जुट जाते हैं। इसकी तथ्यात्मक पड़ताल की जाए, तो शायद ही कोई मामला मिले, जिसने वाजपेयी सरकार या अभी शैशवकाल में चल रही मोदी सरकार की दशा-दिशा प्रभावित की हो।
वास्तव में संघ के स्वयंसेवक राजनीति के अलावा समाज जीवन के अन्यान्य क्षेत्रों में न केवल कहीं अधिक सक्रिय हैं, बल्कि प्रभावी स्थान भी रखते हैं। लेकिन राजनीतिक दल होने से भाजपा में संघ के स्वयंसेवकों की मौजूदगी स्वाभविक तौर पर अधिक मुखर है। और भाजपा के सत्ता में आने पर संघ से उसके संबंध चर्चा का केंद्र बनते हैं और संघ की हर छोटी-बड़ी, यहां तक कि संगठनात्मक बैठकें और कार्यक्रम भी सुर्खियों में आते हैं। भाजपा नेताओं की संघ नेताओं से होने वाली मुलाकातें ‘निर्देश लेने-देने, कोसने, डांट-फटकार लगाने’ का मामला बन जाता है। और इससे संघ-भाजपा के विलक्षण अंतर्संबंधों को लेकर कयासों-अंदेशे के पर्वत रच लिए जाते हैं।
बेशक संघ में भाजपा से समन्वय का जिम्मा किसी केंद्रीय पदाधिकारी को सौंपा जाता है। लेकिन ऐसी व्यवस्था सिर्फ भाजपा के सत्ता में आने पर ही नहीं होती, हरदम मौजूद होती है। संघ-भाजपा या संघ के दूसरे क्षेत्रों में कार्यरत स्वयंसेवकों से संघ के संबंधों का मुख्य आधार राष्ट्रीय हित को लेकर समान सोच और परस्पर विचार-विमर्श है। बहुत कम लोग जानते हैं कि राष्ट्रीय हित के प्रश्नों पर संघ नेता ऐसा आदान-प्रदान दूसरे राजनीतिक या वैचारिक संगठनों से भी नियमित करते हैं। भाजपा के नेता या मंत्री बताएंगे कि देश भर में लगातार प्रवास करने वाले और अलग-अलग क्षेत्रों-वर्गों के लोगों से मिलने वाले संघ पदाधिकारियों से भेंट में जनाकांक्षाओं पर फीडबैक से वे कितना लाभान्वित होते हैं। फिर भी उग्र बयानों, कार्यक्रमों और मांगों से सरकार की सेहत पर जो विपरीत असर पड़ता है, उसके निस्तारण के लिए वरिष्ठ नेतृत्व उन बैठकों या सामूहिक कार्यक्रमों का प्रयोग करता है, जिसे इन संगठनों में सबसे प्रभावी मैकेनिज्म माना जाता है।
केंद्र सरकार के हक में सबसे अच्छी बात यह है कि इसकी अगुआई मोदी करते हैं, जो जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उनकी सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर अवैध निर्माण ढहाने के अभियान में विहिप के भारी विरोध के बावजूद सड़कों-चौराहों पर बने मंदिर भी जमींदोज कर दिए थे। फिर मोदी को न केवल देश की, बल्कि स्वयं को समाज का अभिन्न अंग मानने वाले संघ की भी सद्भावना प्राप्त है। संघ-भाजपा संबंधों को इस पृष्ठभूमि में देखना ही समीचीन होगा।