rupak aur manveya
alankar ke do udharan
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रूपक अलंकार
रूपक साहित्य में एक प्रकार का अर्थालंकार है जिसमें बहुत अधिक साम्य के आधार पर प्रस्तुत में अप्रस्तुत का आरोप करके अर्थात् उपमेय या उपमान के साधर्म्य का आरोप करके और दोंनों भेदों का अभाव दिखाते हुए उपमेय या उपमान के रूप में ही वर्णन किया जाता है। इसके सांग रूपक, अभेद रुपक, तद्रूप रूपक, न्यून रूपक, परम्परित रूपक आदि अनेक भेद हैं।
उदाहरण- चरन कमल बन्दउँ हरिराई
आए महंत वसंत
जहाँ जड़ वस्तुओं या प्रकृति पर मानवीय चेष्टाओं का आरोप किया जाता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।[1] उदाहरण- फूल हंसे कलियां मुसकाईं। यहाँ फूलों का हँसना, कलियों का मुस्कराना मानवीय चेष्टाएँ हैं। अत: मानवीकरण अलंकार है
जहाँ जड़ वस्तुओं या प्रकृति पर मानवीय चेष्टाओं का आरोप किया जाता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।[1] उदाहरण- फूल हंसे कलियां मुसकाईं। यहाँ फूलों का हँसना, कलियों का मुस्कराना मानवीय चेष्टाएँ हैं। अत: मानवीकरण अलंकार है।
जहाँ पर काव्य में जड़ में चेतन का आरोप होता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।
उदाहरण:-
"मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्त्र दृग सुमन फाड़
अवलोक रहा है ,बार-बार
नीचे जल में निज महाकार।"
रूपक साहित्य में एक प्रकार का अर्थालंकार है जिसमें बहुत अधिक साम्य के आधार पर प्रस्तुत में अप्रस्तुत का आरोप करके अर्थात् उपमेय या उपमान के साधर्म्य का आरोप करके और दोंनों भेदों का अभाव दिखाते हुए उपमेय या उपमान के रूप में ही वर्णन किया जाता है। इसके सांग रूपक, अभेद रुपक, तद्रूप रूपक, न्यून रूपक, परम्परित रूपक आदि अनेक भेद हैं।
उदाहरण- चरन कमल बन्दउँ हरिराई
आए महंत वसंत
जहाँ जड़ वस्तुओं या प्रकृति पर मानवीय चेष्टाओं का आरोप किया जाता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।[1] उदाहरण- फूल हंसे कलियां मुसकाईं। यहाँ फूलों का हँसना, कलियों का मुस्कराना मानवीय चेष्टाएँ हैं। अत: मानवीकरण अलंकार है
जहाँ जड़ वस्तुओं या प्रकृति पर मानवीय चेष्टाओं का आरोप किया जाता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।[1] उदाहरण- फूल हंसे कलियां मुसकाईं। यहाँ फूलों का हँसना, कलियों का मुस्कराना मानवीय चेष्टाएँ हैं। अत: मानवीकरण अलंकार है।
जहाँ पर काव्य में जड़ में चेतन का आरोप होता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।
उदाहरण:-
"मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्त्र दृग सुमन फाड़
अवलोक रहा है ,बार-बार
नीचे जल में निज महाकार।"
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