Hindi, asked by amarshk1363, 9 months ago

rupay ki aatmakatha

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Answered by pratyushmishra10000
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रुपये की आत्मकथा पर निबंध | Essay on Autobiography of Money in Hindi!

मेरा नाम रुपया है । मेरा निवास कुबेर के खजाने में हैं । मेरे देवता कुबेर माने जाते हैं । कुछ लोग लक्ष्मी भी कहते हैं । मेरा रूप कह ही है लेकिन मेरे अनेक नाम-रुबल, येन, लारा, मार्क, डालर, पौंड, दीनार, रुपया आदि है ।

मेरे द्वारा ही देश और विदेश में व्यापार होता है । मुझे देकर लोग अपने जीवन यापन की आवश्यक वस्तुएँ खरीदते हैं । प्राचीन समय में मेरा रूप कुछ और ही था । मेरी महिमा कुछ कम थी । लोग एक-दूसरे पर प्राण देने को तैयार रहते थे । गुरुकुलों में भी शिक्षाध्ययन के लिए फीस नहीं ली जाती थी । विद्वानों की सर्वत्र पूजा होती थी । राजा भी विद्वानों का सम्मान करते थे ।

धीरे-धीरे समय बदला और मेरा सम्मान होने लगा । मैं सर्वोपरि हो गया । भैया, दादा, मामा, माँ, बहन यह सब नगण्य हो गए और जगत में एक कहावत प्रसिद्ध हो गई:-

दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपया

मेरे आ जाने से लोगों का रहन-सहन, बोल-चाल, पहनने का ढंग, चाल-ढाल सभी कुछ बदल जाती है कल का राम, राम प्रसाद बन गया है । मेरी सुगन्ध से सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं । मैं जिसके पास चला जाऊँ वही व्यक्ति कुलीन, दर्शनीय, पण्डित, गुणी बन जाता है । उसके ऊपर रिश्तेदार और मित्र, मक्खी की तरह मंडराते रहते हैं ।

प्राचीन काल में लोग कहा करते थे कि मेरा और सरस्वती का बैर है । अर्थात् हम दोनों एक स्थान पर इकट्‌ठे नहीं रह सकते । यदि व्यक्ति के पास विद्या (सरस्वती) है तो मैं (लक्ष्मी) नहीं । यदि मैं हूं तो विद्या नहीं । लेकिन लगता है आधुनिक युग में यह सिद्धान्त बदल गया, मेरी और सरस्वती की मित्रता हो गई है ।

धनवान व्यक्ति ही अच्छे विद्यालय में अपने बच्चों को शिक्षा दिलवा पाता है । परीक्षा में अच्छे अंक दिलवाने के ट्‌यूशन लगा देता है । परीक्षक को रिश्वत देकर फेल छात्र को पास करा लिया जाता है । मेरी महिमा दिन-प्रतिदिन इसी तरह बढ़ती रही तो वह दिन दूर नहीं जब शिक्षा केवल धनाढ़य लोगों के लिए रह जाएगी और निर्धन और योग्य छात्र यदि उच्च शिक्षा प्राप्त कर ले तो उन्हें केवल अपवाद कहें जाएंगें ।

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मेरी ही महिमा से व्यक्ति विदेश जाकर शिक्षा प्राप्त कर पाता है । मैं जिस व्यक्ति के पास जाता हूँ, उस व्यक्ति में अहंकार, द्वेष, ईष्या, क्रोध, घृणा आदि अवगुण स्वत: ही आ जाते हैं । मुझे पाने का लालच उनमें दिन प्रतिदिन बढ़ता जाता है । धनसंचय के लिए वह गलत रास्ते अपनाता है ।

काला बाजारी, मिलावट, रिश्वतखोरी से अपनी तिजोरियों को भरता है । गरीब-अमीर सभी मुझे पाने की दौड़ में शामिल हैं । गुण-अवगुण का विचार किए बिना मुझे अमृत समझ सभी पान करने के लिए अंधाधुंध भागे जा रहे हैं ।

मेरी महिमा से ही असंख्य मित्र बनते हैं । मेरे न रहने पर कोई रिश्तेदार उन्हें नहीं पूछता । दूसरों के घरों में कोई उसका सम्मान नहीं करता । यदि शादी में दहेज कम हो तो कोई कन्या से विवाह नहीं करना चाहता । मेरे ही कारण हत्याएं और आत्महत्याएँ होती हैं । यहाँ तक कि लोग अपने भाई-बहनों और माता-पिता की हत्या तक कर देते हैं ।

मुझे प्राप्त करने के लिए अनेक युद्ध लड़े गए । मेरे ही कारण यह भारत सोने की चिड़िया कहलाया । मुझसे आकृष्ट होकर अनेक आक्रान्ता यहाँ आए उन्होंने इस देश को गुलाम बनाया । अंग्रेज भी मुझे प्राप्त करने के लिए यहाँ आए और उन्होंने इस देश को खूब लूटा और 200 वर्षो तक यहाँ शासन किया ।

ईराक ने मुझे प्राप्त करने के लिए कुवैत पर आक्रमण किया था । ऐसा नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति गैरकानूनी ढंग से धन कमाता है । कुछ लोग मुझे कठिन परिश्रम करके प्राप्त करते हैं । दिन भर मेहनत करते हैं । तब कहीं जाकर उन्हें दो समय की रोटी खाने को मिलती है फिर भी वे सुख का अनुभव करते हैं ।


amarshk1363: Thanks
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