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विरह-वेदना
निसि दिन बरसत नैन हमारे।
सदा रहति पावस रितु हम पै, जब तैं श्याम सिधारे।।
दृग अंजन रहत नहिं कबहूँ, कर कपोल भए कारे।
कंचुकि पट सूखत नहिं कबहूँ, उर बिच बहत पनारे।।
सूरदास प्रभु अंबु बढ्यो है, गोकुल लेहु उबारे।
कह लौं कहौं स्यामधन-सुंदर, बिकल होत अति भारे।। का अर्थ
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नदी और उसकी सहायक नदियाँ मिलकर नदी तंत्र बनाती है। जिस इलाके का सारा पानी नदी तंत्र को मिलता है, वह इलाका जल निकास घाटी (वाटरशेड) कहलाता है। नदी, जल निकास घाटी पर बरसे पानी को इकट्ठा करती है। उसे प्रवाह में शामिल कर आगे बढ़ती है।
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