Hindi, asked by rawathemu53, 1 month ago

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निम्नलिखित विषय पर अनुच्छेद लिखिए- (60
का मानव सेवा ही सच्ची ईश्वर सेवा​

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Answered by siddhibhakare0
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ईश्वर की उपासना करने के लिए कहीं बाहर जाने कीआवश्यकता नहीं है। मानव की सेवा करना ही सच्ची ईश्वर भक्ति है। इस सूत्र को अपनी कार्यपद्धति में अपनानेवाली श्रीमती सुमन तुलसियानी का जन्म जैसे समाजसेवा के लिए ही हुआ है। लक्ष्मी व सरस्वती का वरदहस्त प्राप्त करने वाली यह महिला समाज के उन लोगों को आर्थिक सहयोग प्रदान करती है जो बीमार हैं या शैक्षणिक क्षेत्र में प्रगति करना चाहते हैं, परंतु आगे बढ़ने के लिए आर्थिक रूप से अक्षम हैं। श्रीमती सुमन तुलसियानी जीवन में स्वास्थ्य और शिक्षा को सबसे महत्वपूर्ण मानती हैं। उनका कहना है कि देश की प्रगति तभी हो सकती है, जब लोग स्वस्थ और शिक्षित होंगे। अपने धन को किसी ऐसे व्यक्ति को देना जिसे उसकी आवश्यकता है, यह प्रवृत्ति ही मनुष्य को समाज में आदरणीय बनाती है।

अपने परिवार की संपूर्ण जिम्मेदारियां को निभाने के साथ-साथ समाज के लिए कुछ करने का जज्बा लेकर जब श्रीमती तुलसियानी ने अपने काम की शुरूआत की तब से लेकर आज तक उनका यह सफर निरंतर चला रहा है। उनके पास मदद की गुहार लेकर आनेवाले लोगों को यह विश्वास होता है कि वे खाली हाथ नहीं लौटेंगे। सुमनजी का व्यवहार इन लोगों के साथ वैसा ही होता है जैसा कि एक मां का अपने बच्चों के साथ। जिस तरह बच्चे के बीमार होने पर मां व्याकुल होती है और सफलता पर खुश होती है, उसी तरह सुमनजी भी इन लोगों के साथ व्यवहार करती हैं। अपनेपन की भावना के साथ कहे गए उनके शब्द लोगों को धैर्य देते हैं और उनमें जीवन की कठिनाइयों से लड़ने का साहस जागृत करते हैं। सुमनजी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर कई युवाओं ने अपने शैक्षणिक जीवन में ऐसी बुलंदियों को हासिल किया है जिस पर उन्हें गर्व महसूस होता है। ये युवा भी अपनी उन्नति को श्रीमती तुलसियानी को अर्पित करते हुए उन्हें ग्रीटिंग कार्ड, पत्र भेजते हैं, जिन्हें वे सहेजकर रखती हैं। लोगों से बनाए हुए इस आत्मिक रिश्ते को ही वे अपनी जमापूंजी मानती हैं।

जन्म, शिक्षा व मुंबई आगमन

श्रीमती तुलसियानी का जन्म ९ अक्टूबर, १९३७ को गोवा में हुआ। स्व. श्री मुकुंद कुवेलकर और श्रीमती द्वारका कुवेलकर की इस सबसे छोटी कन्या ने अपनी विद्यालयीन शिक्षा न्यू ईरा हाईस्कूल, मारगांव (गोवा) से पूर्ण की और सन् १९५२ में उनका मुंबई आगमन हुआ। मुंबई के गिरगांव स्थित उपनगर में चिकित्सक समूह हाईस्कूल में उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई की और एस. एस. सी. परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने सोफिया कॉलेज में प्रवेश लिया। यहां उन्होंने मनोविज्ञान और फ्रेंच का प्रमुख रूप में अध्ययन किया। कला संकाय की स्नातक उपाधि उन्हें फ्रेंच में प्राप्त हुई जिसमें उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया था। उन्हें पेरिस के सर्बोन विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षावृत्ति भी दी गई; परंतु कुछ निजी कारणों के कारण उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया।

विवाह एवं पारिवारिक जीवन

सन् १९५९ में श्रीमती सुमन का विवाह रमेश तुलसियानी से हुआ। सुमनजी बताती हैं कि उनका वैवाहिक जीवन अत्यंत आनंदपूर्वक रहा। उन्होंने परिवार की सभी जिम्मेदारियों को संभाला। नई भाषा सीखने की ललक होने के कारण एक साल के भीतर ही वे उत्तम सिंधी वक्ता बन गईं। सुमनजी की दो बेटियां हैं। दोनों ने ही विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त की है, परंतु मां के संस्कार दोनों के मन पर इस तरह अंकित हैं कि उन्होंने विदेश में बसने की बजाय भारत लौटना स्वीकारा और अब भारत में ही अपनी सेवाएं दे रहीं हैं। बेटियों के विवाह और अपनी नवासियों को संभालने की जिम्मेदारियों से मुक्त होने के बाद सुमनजी ने अपना समय पूर्ण रूप से समाजकार्य को देने का निश्चय किया, हालांकि पहले भी पारिवारिक व्यस्तता के साथ ही वे समाजसेवा भी करती थीं।

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