Hindi, asked by tarbarsingh2, 3 months ago

सुबह की नींद
जागने से पहले की खुमारी
मँडरा रही है
और तुम्हारा मन
आतुर है कुलाँचे भरने।
अथवा
दुर्गम बर्फानी घाटी में, शत-सहस्त्र फुट ऊँचाई पर
अलख-नाभि से उठने वाले, निज के ही उम्मादक परिमल
के पीछे धावित हो होकर, तरल तरूण कस्तूरी मृग को
अपने पर चढ़ते देखा है, बादल को घिरते देखा है।
9- निम्नलिखित में से किसी एक गद्यांश की व्याख्या संदर्भ, प्रसंग एवं विशेष सहित लिखिए - अंक 04
इतिहास साक्षी है, बहुत बार अकेले चने ने ही भाड़ फोड़ा है; और ऐसा फोड़ा है कि भाड़ में खिल-खिल
ही नहीं हो गया, उसका निशान तक ऐसा छूमन्तर हुआ कि कोई यह भी न जान पाया कि वह बेचारा
आखिर था कहाँ?
अथवा
गेहूँ की दुनियाँ खत्म होने जा रही है - वह स्थूल दुनिया, जो आर्थिक ओर राजनीतिक रूप से हम सब
पर छाई हुई है​

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Answered by krish32334
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