सुबह का टहलना एक अच्छा व्यायाम है
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स्वास्थ्य रक्षा के लिए जितना सन्तुलित आहार, जल, वायु, सूर्यताप, निद्रा, विश्राम आदि की आवश्यकता होती है, व्यायाम की उससे कम नहीं। यह सर्वमान्य एवं निरापद तथ्य है कि यदि मनुष्य परिश्रम न करे तो उसके सम्पूर्ण शारीरिक अवयव अपनी शक्ति खोने लगते हैं। लोहे को किसी जगह यों ही पड़ा रहने दें तो उसमें जंग लग जाती है, उसकी सारी शक्ति व मजबूती समाप्त हो जाती है। ऐसे ही अपने अंग प्रत्यंगों को हिलाते डुलाते क्रियाशील न बनाये रहें तो इस शरीर में भी जंग लग जाने जैसी बुराई उत्पन्न होने का खतरा रहता है। इससे स्वास्थ्य का गिर जाना, रोगी हो जाना भी स्वाभाविक ही है।
शरीर को व्यायाम की, कसरत की, आवश्यकता है, यह ठीक है किन्तु ऐसे व्यायाम जो शारीरिक दृष्टि से कड़े पड़ते हों या जिनमें रुचि का अभाव हो लोगों को अधिक दिन तक अच्छे नहीं लगते। इनके लिए महंगे आहार की भी व्यवस्था करनी पड़ती है जो हर किसी के लिये सुलभ भी नहीं। इन्हें कोई उत्साह में आकर शुरू भले ही कर दे किन्तु अधिक दिनों तक इन नियमों का पालन नहीं कर सकता, क्योंकि यह आर्थिक, रुचि व समय की दृष्टि से महंगे पड़ते हैं।
अंग प्रत्यंगों को स्वाभाविक रूप में सशक्त रखने वाली कसरत टहलना है। यह सरलतम व्यायाम है। यह सर्वसाधारण के लिए सुलभ व उपयोगी है। शारीरिक दृष्टि से दुर्बल व्यक्ति, स्त्री, बच्चे, बूढ़े सभी अपनी-अपनी अवस्था के अनुकूल इससे लाभ उठा सकते हैं। इसमें किसी को भी हानि की सम्भावना नहीं है। घूमना जितना स्वास्थ्य के लिए उपयोगी हो सकता है, उतना ही रुचिकर भी होता है। इससे मानसिक प्रसन्नता व शारीरिक स्वास्थ्य की दोहरी प्रक्रिया पूरी होती है इसलिए संसार के सभी स्वास्थ्य विशेषज्ञों तथा महापुरुषों ने इसे सर्वोत्तम व्यायाम माना है और सभी ने इसका दैनिक जीवन में प्रयोग किया है। उन लोगों के लिए, जिन्हें प्रतिदिन दफ्तरों में बैठकर काम करना होता है, घूमना अत्यन्त आवश्यक है। दिन भर दुकानों में बैठने वालों, बुद्धिजीवी व्यक्तियों के लिये भी यह उतना ही उपयोगी है। इससे कुदरती तौर पर सम्पूर्ण शरीर का व्यायाम होता है।
कुश्ती लड़ना, दण्ड बैठक लगाना, डंबल, मुगदर भाँजना आदि व्यायाम हैं, तो उपयोगी, किन्तु इनसे शरीर के कुछ खास-खास स्थानों की माँसपेशियों का ही व्यायाम होता है। इससे ये स्थान तो सुडौल बन जाते है किन्तु दूसरे ऐसे स्थान जहाँ इन व्यायामों से हलचल उत्पन्न नहीं होती, शिथिल बने रहते हैं और एक बार जैसे ही इन्हें छोड़ा कि जिस तेजी से शरीर का विकास हुआ था उसी गति से शरीर का पतन हो जाता है। फिर ऐसे व्यायामों में मौसम की प्रतिकूलता का भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है। किन्तु टहलने से सम्पूर्ण शरीर की स्वाभाविक तौर पर कसरत होने से रक्त का संचार धीरे-धीरे बढ़ता है जिससे हल्की हल्की मालिश जैसी क्रिया सम्पूर्ण अंगों प्रत्यंगों में उत्पन्न होती है और सम्पूर्ण अवयव पर्याप्त ऊष्मा प्राप्त कर लेते हैं। अप्राकृतिक व्यायामों से एक ओर जो शारीरिक अपव्यय होता था उससे भी शरीर बचा रहता है। यही कारण है कि दूसरे व्यायामों के बाद सम्पूर्ण शरीर शिथिल पड़ जाते हैं, लोग थकावट महसूस करने लगते हैं, किन्तु आप कुछ दूर टहलकर आइये, आपको बिल्कुल भी थकावट मालूम नहीं पड़ेगी।
टहलने से सारे शरीर की सजीवता बनी रहती है। फेफड़े व हृदय की शक्ति बढ़ती है। भोजन पचता है और शरीर की सफाई में लगे हुए अवयव तेजी से अपना काम पूरा करते हैं। इसका सीधा दबाव हड्डियों व माँसपेशियों पर पड़ता है जिससे ये मजबूत बनती हैं और शरीर में विद्युत शक्ति का संचार होने लगता है जिससे त्वचा में स्निग्धता आती है, आभा झलकने लगती है। गालों पर लाली और चेहरे की चमक बढ़ती है। यह सब खून की शुद्धता के कारण ही होता है।
दिन भर के थके हुए शरीर को गति प्रदान करने के लिए यह आवश्यक है कि प्रतिदिन नियमित रूप से कुछ दूर घूम आया करें। नियमित वायुसेवन और टहलने से दीर्घ जीवन का लाभ मिलता है। इससे मानसिक स्फूर्ति बढ़ती है। जो अंग कार्य की अधिकता से मुरझा गये थे या शिथिल पड़ गये थे, वे दुबारा प्रफुल्लित व उत्साहित होकर कार्य करने लगते हैं। इन परिस्थितियों में स्वास्थ्य का बना रहना, बीमारियों से बचा रहना प्रायः निश्चित ही मानना चाहिए।
नियमित रूप से टहलने से जिनके शरीर दुर्बल होते हैं, उन्हें स्वास्थ्य लाभ मिलता है। जिनका शरीर अधिक मोटा हो जाता है वे सुडौल बनते हैं। इस दृष्टि से तो टहलने को ही सर्वांगपूर्ण व्यायाम मानना पड़ता है। श्वास प्रश्वास की दोनों प्रकार की क्रियाएँ उद्दीप्त होती जिससे व्यायाम और प्राणायाम के दोनों ही उद्देश्य हो जाते हैं। व्यायाम का अर्थ है प्रत्येक अंग को क्रियाशील रखना और प्राणायाम का तात्पर्य है प्राकृतिक विद्युत शक्ति या प्राण-शक्ति को धारण करना। इस प्रकार शरीर और प्राण दोनों की पुष्टि होने से यह सभी दृष्टियों से उपयुक्त है। श्वास-प्रश्वास में तेजी आने से शरीर की अनावश्यक वसा जल- भुनकर समाप्त हो जाती है, जिससे कब्ज, अग्निमन्दता में शीघ्रता से लाभ होता है। तेजी से गहरी साँस लेते हुए टहलना कब्ज की अचूक औषधि है। दुःस्वप्नों की निवृत्ति, भरपूर नींद आना इसी कारण से होता है। वीर्य सम्बन्धी रोगों में प्रातःकाल का घूमना अतीव लाभदायक होता है। सर्दी के दिनों में जब ओस गिरती है तो नंगे पाँव हरी दूब पर टहलने से आँखों की ज्योति बढ़ती है, मस्तिष्क, ताजा रहता है और सारे शरीर को कुदरती विद्युत बड़ी सुगमता से मिल जाती है। इससे शारीरिक सौंदर्य बढ़ता है, ओठों, गालों पर लाली आती है और आलस्य दूर हो जाता है।
शरीर को व्यायाम की, कसरत की, आवश्यकता है, यह ठीक है किन्तु ऐसे व्यायाम जो शारीरिक दृष्टि से कड़े पड़ते हों या जिनमें रुचि का अभाव हो लोगों को अधिक दिन तक अच्छे नहीं लगते। इनके लिए महंगे आहार की भी व्यवस्था करनी पड़ती है जो हर किसी के लिये सुलभ भी नहीं। इन्हें कोई उत्साह में आकर शुरू भले ही कर दे किन्तु अधिक दिनों तक इन नियमों का पालन नहीं कर सकता, क्योंकि यह आर्थिक, रुचि व समय की दृष्टि से महंगे पड़ते हैं।
अंग प्रत्यंगों को स्वाभाविक रूप में सशक्त रखने वाली कसरत टहलना है। यह सरलतम व्यायाम है। यह सर्वसाधारण के लिए सुलभ व उपयोगी है। शारीरिक दृष्टि से दुर्बल व्यक्ति, स्त्री, बच्चे, बूढ़े सभी अपनी-अपनी अवस्था के अनुकूल इससे लाभ उठा सकते हैं। इसमें किसी को भी हानि की सम्भावना नहीं है। घूमना जितना स्वास्थ्य के लिए उपयोगी हो सकता है, उतना ही रुचिकर भी होता है। इससे मानसिक प्रसन्नता व शारीरिक स्वास्थ्य की दोहरी प्रक्रिया पूरी होती है इसलिए संसार के सभी स्वास्थ्य विशेषज्ञों तथा महापुरुषों ने इसे सर्वोत्तम व्यायाम माना है और सभी ने इसका दैनिक जीवन में प्रयोग किया है। उन लोगों के लिए, जिन्हें प्रतिदिन दफ्तरों में बैठकर काम करना होता है, घूमना अत्यन्त आवश्यक है। दिन भर दुकानों में बैठने वालों, बुद्धिजीवी व्यक्तियों के लिये भी यह उतना ही उपयोगी है। इससे कुदरती तौर पर सम्पूर्ण शरीर का व्यायाम होता है।
कुश्ती लड़ना, दण्ड बैठक लगाना, डंबल, मुगदर भाँजना आदि व्यायाम हैं, तो उपयोगी, किन्तु इनसे शरीर के कुछ खास-खास स्थानों की माँसपेशियों का ही व्यायाम होता है। इससे ये स्थान तो सुडौल बन जाते है किन्तु दूसरे ऐसे स्थान जहाँ इन व्यायामों से हलचल उत्पन्न नहीं होती, शिथिल बने रहते हैं और एक बार जैसे ही इन्हें छोड़ा कि जिस तेजी से शरीर का विकास हुआ था उसी गति से शरीर का पतन हो जाता है। फिर ऐसे व्यायामों में मौसम की प्रतिकूलता का भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है। किन्तु टहलने से सम्पूर्ण शरीर की स्वाभाविक तौर पर कसरत होने से रक्त का संचार धीरे-धीरे बढ़ता है जिससे हल्की हल्की मालिश जैसी क्रिया सम्पूर्ण अंगों प्रत्यंगों में उत्पन्न होती है और सम्पूर्ण अवयव पर्याप्त ऊष्मा प्राप्त कर लेते हैं। अप्राकृतिक व्यायामों से एक ओर जो शारीरिक अपव्यय होता था उससे भी शरीर बचा रहता है। यही कारण है कि दूसरे व्यायामों के बाद सम्पूर्ण शरीर शिथिल पड़ जाते हैं, लोग थकावट महसूस करने लगते हैं, किन्तु आप कुछ दूर टहलकर आइये, आपको बिल्कुल भी थकावट मालूम नहीं पड़ेगी।
टहलने से सारे शरीर की सजीवता बनी रहती है। फेफड़े व हृदय की शक्ति बढ़ती है। भोजन पचता है और शरीर की सफाई में लगे हुए अवयव तेजी से अपना काम पूरा करते हैं। इसका सीधा दबाव हड्डियों व माँसपेशियों पर पड़ता है जिससे ये मजबूत बनती हैं और शरीर में विद्युत शक्ति का संचार होने लगता है जिससे त्वचा में स्निग्धता आती है, आभा झलकने लगती है। गालों पर लाली और चेहरे की चमक बढ़ती है। यह सब खून की शुद्धता के कारण ही होता है।
दिन भर के थके हुए शरीर को गति प्रदान करने के लिए यह आवश्यक है कि प्रतिदिन नियमित रूप से कुछ दूर घूम आया करें। नियमित वायुसेवन और टहलने से दीर्घ जीवन का लाभ मिलता है। इससे मानसिक स्फूर्ति बढ़ती है। जो अंग कार्य की अधिकता से मुरझा गये थे या शिथिल पड़ गये थे, वे दुबारा प्रफुल्लित व उत्साहित होकर कार्य करने लगते हैं। इन परिस्थितियों में स्वास्थ्य का बना रहना, बीमारियों से बचा रहना प्रायः निश्चित ही मानना चाहिए।
नियमित रूप से टहलने से जिनके शरीर दुर्बल होते हैं, उन्हें स्वास्थ्य लाभ मिलता है। जिनका शरीर अधिक मोटा हो जाता है वे सुडौल बनते हैं। इस दृष्टि से तो टहलने को ही सर्वांगपूर्ण व्यायाम मानना पड़ता है। श्वास प्रश्वास की दोनों प्रकार की क्रियाएँ उद्दीप्त होती जिससे व्यायाम और प्राणायाम के दोनों ही उद्देश्य हो जाते हैं। व्यायाम का अर्थ है प्रत्येक अंग को क्रियाशील रखना और प्राणायाम का तात्पर्य है प्राकृतिक विद्युत शक्ति या प्राण-शक्ति को धारण करना। इस प्रकार शरीर और प्राण दोनों की पुष्टि होने से यह सभी दृष्टियों से उपयुक्त है। श्वास-प्रश्वास में तेजी आने से शरीर की अनावश्यक वसा जल- भुनकर समाप्त हो जाती है, जिससे कब्ज, अग्निमन्दता में शीघ्रता से लाभ होता है। तेजी से गहरी साँस लेते हुए टहलना कब्ज की अचूक औषधि है। दुःस्वप्नों की निवृत्ति, भरपूर नींद आना इसी कारण से होता है। वीर्य सम्बन्धी रोगों में प्रातःकाल का घूमना अतीव लाभदायक होता है। सर्दी के दिनों में जब ओस गिरती है तो नंगे पाँव हरी दूब पर टहलने से आँखों की ज्योति बढ़ती है, मस्तिष्क, ताजा रहता है और सारे शरीर को कुदरती विद्युत बड़ी सुगमता से मिल जाती है। इससे शारीरिक सौंदर्य बढ़ता है, ओठों, गालों पर लाली आती है और आलस्य दूर हो जाता है।
shuchitagarg:
NYC Hindi
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morning walk is good exercise
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