सुभान दादा कर्ज के पैसों से तीरथ क्यों नहीं करना चाहते थे?
Answers
Explanation:
मैं वैली स्कूल में आने से पहले भी कई स्कूलों में पढ़ाती थी | मैंने १९९९ में ऑरबिंदो सी. बी. एस. ई. बोर्ड स्कूल में पढ़ाया था | वहाँ मैंने कक्षा १० और ९ को पढ़ाया | उस समय वहाँ दो पाठ्य पुस्तकें कक्षा दस के लिए थीं - मानसी और एक पुस्तक शायद संचायिका थी जिसका नाम मुझे याद नहीं है पर मैंने छात्र -छात्राओं की मदद के लिए दोनों किताबों के कुछ नोट्स बनाए थे जिन्हें समय मिलने टाइप कर लिया , सोचा शायद इनमें से कोई कहानी या पाठ अभी प्रस्तुत पाठ्यक्रम में हो तो किसी को मदद मिल जाए | मुझे याद नहीं है कि मैंने कैसे ये नोट्स बनाए थे , कहीं से लिए थे या खुद लिखे थे इसलिए इन पर मेरा कोई अधिकार व दावा नहीं है | इसे मैं एक संग्रहण के रूप में यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ ताकि किसी के लिए यह सहायक सिद्ध हों | आशा है कि मेरे विचारों को समझ आप में से कोई भी इस विषय -सामग्री से लाभान्वित होगा | ये पाठ इस क्रम में हैं -
1. सागर तट के आस-पास- प्रभाकर द्विवेदी
2. मेरी जीवन रेखा - आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
3. भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध- आनन्द शंकर माधवन
4. सुभान खां - रामवृक्ष बेनीपुरी
5. मेरी अंतिम अभिलाषा – श्री जवाहरलाल नेहरू
6. बीमार का इलाज –
7. अपना-अपना भाग्य –श्री जैनेन्द्र कुमार
8. क्या निराश हुआ जाए ? – आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
9. मिठाईवाला – श्री भगवतीप्रसाद बाजपेयी
10. व्यवहार कुशलता –श्री अनंत कुमार शेवड़े
11. इब्राहीम गार्दी –वृन्दावनलाल वर्मा
12. पहली चूक – श्री लाल शुक्ल
१३. अकेली – मन्नू भण्डारी
1. सागर तट के आस-पास- प्रभाकर द्विवेदी
प्रश्नोत्तर –
१. दीघा से चंदनेश्वर जाने के मार्ग में पड़ने वाले किन दृश्यों का लेखक ने चित्रण किया है ?
उत्तर – दीघा से चंदनेश्वर की दूरी लगभग तीन मील है| पगडंडी वाले रास्ते के दोनों ओर ताड़ और नारियल के बहुत-से पेड़ हैं | धान के हरे-भरे खेत भी दिखाई पड़ते हैं | बीच-बीच में पान के भीटे मिलते हैं जिन्हें उड़ीसा के लम्बे-काले किसान सींचते हुए दिखते हैं | पोलंग गाछ के पेड़ भी बहुत अधिक मात्रा में हैं | कहीं-कहीं कटहल और काजू के पेड़ भी मिलते हैं |
बाँस की बहुत-सी झाड़ियाँ भी दिखती हैं | सफेद कुमुदिनियों और लाल कमलों से भरे तालाब और खेत दिखाई देते हैं | रास्ते की घासों में छुई-मुई के पौधे भी होते हैं | लोग तालाबों के पानी का उपयोग करते हैं| घरों के आगे और खेतों के किनारे सरकार के द्वारा लगाए गए हैंडपंप मिलते हैं | एक टूटी-फूटी इमारत भी मिलती है जो बच्चों का प्राइमरी स्कूल है |
२. चंदनेश्वर के आस-पास के लोग तालाबों का पानी क्यों प्रयोग में लाते हैं ? (९४)
उत्तर – चंदनेश्वर के आस-पास के लोग तालाबों का पानी ही प्रयोग करते हैं क्योंकि इस क्षेत्र में कुएँ नहीं होते | यहाँ गाँवों में घरों के आगे तथा खेतों के किनारे पर कहीं-कहीं हैंडपंप लगे मिलते हैं |
३. चंदनेश्वर मंदिर की स्थिति देखकर लेखक के मन पर क्या प्रभाव पड़ा ? (९४)
उत्तर – चंदनेश्वर के मंदिर में लेखक को चार-पाँच ही दर्शनार्थी दिखे | लेकिन पंडों की संख्या चालीस-पचास के करीब थी | ये पंडे व्यवहार में बनारसी पंड़ों की तरह चतुर थे |
४. दीघा के समुद्रतट और रतनपुर के समुद्रतट के प्राकृतिक दृश्यों में क्या भिन्नता है? (९५,९८)
उत्तर – दीघा के समुद्रतट पर झाऊ और केतकी के वन थे | सागर का तट निर्जन था | घूमने और समुद्र-स्नान करने और आनन्द मनाने के लिए यह एक रमणीक स्थान था | इसके विपरीत रतनपुर के समुद्रतट पर चारों और बालू का रेगिस्तान फैला हुआ था | आकाश में मंडराने वाली चीलों की परछाइयां रेत पर पड़ रही थीं | साथ ही साथ समुद्र के तट पर मछुआरों की चहल-पहल अधिक थी | सागर तट पर ही श्मशान था | जहाँ अधजली लकड़ियाँ बाँस के ठट्टे पड़े हुए थे | हवा में कपड़ा जलने की दुर्गन्ध थी | तट पर एक ओर मछलियों की छान –बीन और तौल –बाँट करते हैं | बीमार और अखाद्य जीवों को तट पर ही फ़ेंक दिया जाता है | रतनपुर के इस समुद्र तट पर कोई दर्शक नहीं होता | मछुवारों और उनके परिवार के सदस्य होते ह अं तथा तट पर घूमने वाले कुत्ते दिखाई