सोभा सिंधु न अंत लही री।
नंद भवन भरि पूरि उमँगि चल ब्रज की बीथिनु फिरति बही है
देखी जाइ आजु गोकुल में घर-घर बेचहि फिरति दही ।
कहँ लगि कहौ बनाइ बहुत विधि कहत न मुख सहसहुँ निबही :
जसुमति उदर अगाध उदधितें उपजी ऐसौ सबनि कही है।
सूर स्याम प्रभु इन्द्रनीलमनि ब्रज बनिता उर लाइ गही री।। vayakya
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सोभा सिंधु न अंत लही री।
नंद भवन भरि पूरि उमँगि चल ब्रज की बीथिनु फिरति बही है
देखी जाइ आजु गोकुल में घर-घर बेचहि फिरति दही ।
कहँ लगि कहौ बनाइ बहुत विधि कहत न मुख सहसहुँ निबही :
जसुमति उदर अगाध उदधितें उपजी ऐसौ सबनि कही है।
सूर स्याम प्रभु इन्द्रनीलमनि ब्रज बनिता उर लाइ गही री।। vayakya
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