६ सुभाषचंद्र बोस का अपनी माँ के लिए लिखा पत्र पढ़िए
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रांची
रविवार
आदरणीय मां
मुझे काफी समय से कलकत्ता के समाचार नहीं मिले हैं। आशा करता हूं कि आप सब स्वस्थ होंगे। मैं समझता हूं कि आपने शायद समयाभाव के कारण पत्र नहीं लिखा है। मां, मैं सोचता हूं कि क्या इस समय भारत माता का एक भी सपूत ऐसा नहीं है, स्वार्थरहित हो? क्या हमारी मातृभूमि इतनी अभागी है? कैसा था हमारा स्वर्णिम अतीत और कैसा है यह वर्तमान! वे आर्यवीर आज कहां हैं, जो भारत माता की सेवा के लिए अपना बहुमूल्य जीवन प्रसन्नता से न्यौछावर कर देते थे? आप मां हैं, लेकिन क्या आप केवल हमारी ही माता हैं?
नहीं, आप सभी भारतीयों की मां हैं, और यदि सभी भारतीय आपके पुत्र हैं तो क्या आपके पुत्रों का दुख आपको व्यथा से विचलित नहीं कर देता? मां, केवल देश की ही दुर्दशा नहीं हो रही है। आप देखिए कि हमारे धर्म की हालत क्या है? हमारा हिंदू धर्म कितना और कैसा पवित्र था और आज वह किस प्रकार पतन के गर्त में जा रहा है। आप उन आर्यों की बात सोचें जिन्होंने इस धरती की शोभ बढ़ाई थी और अब उनके पतित वंशजों को देखें। तो क्या हमारा सनातन धर्म विलुप्त होने जा रहा है?