सोभित कर नवनीत लिए।
घुटुनि चलत रेनु तन मंडित, मुख दधि लेप किए।
चारु, कपोल, लोल लोचन, गोरोचन-तिलक दिए।
लट-लटकनि मनु मत्त मधुप-गन मादक मधुहिं पिए।
कला-कंठ, बज्र केहरि-नख, राजत रुचिर हिए।
धन्य सूर एको पल इहिं सुख, का सत कल्प जिए॥2॥
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संदर्भ - सूरदास जी द्वारा रचित इस पद में बालकृष्ण की अनुपम सौंदर्य राशि का मनोहारी वर्णन किया गया है ।
व्याख्या : सूरदास जी कहते हैं कि बालकृष्ण अपने हाथों में माखन लिए सुशोभित हो रहे हैं । श्री कृष्ण का स्वरूप बाल्यावस्था का है और वह घुटने के बल चल रहे हैं | उनके तन पर मिट्टी के कण लग गए हैं तथा उनके मुख पर दही लपेटा हुआ दिखाई दे रहा है | उनके कपोल अर्थात गाल बहुत सुंदर हैं । बालकृष्ण के नेत्र चपल तथा चंचल है और ललाट अर्थात माथे पर गोरोचन का तिलक लगा हुआ है | उनके बालों की लट इस तरह उनके गालों पर लटकती हुई या ऐसे झूमती -सी प्रतीत हो रही है मानो भंवरे मीठे शहद का पान कर (पीकर ) मतवाले हो गए हो | उनका यह असीम सौंदर्य गले में पड़े हुए कंठ हार और सिंह नख से और भी बढ़ जाता है । सूरदास जी कहते हैं कि श्री कृष्ण के बाल रूप के दर्शन यदि एक पल के लिए भी हो जाते है तो जीवन कृतकृत्य हो जाता है अन्यथा सौ कल्पों तक जीवन जीना भी निरर्थक ही है यदि उसमें श्याम सुंदर के इस बालस्वरूप की झांकी का दर्शन प्राप्त ना हो ।
विशेष - सूर वात्सल्य रस के सम्राट है | इसके श्री कृष्ण के अनुपम सौंदर्य को दर्शाने के लिए कवि ने अलंकारों की विचित्र छटा बिखेरी है उसके अंतर्गत अनुप्रास रूपक तथा उत्प्रेक्षा की अद्भुत छटा देखते ही बनती है |
Answer:
वात्सल्य रस
Explanation:
यहां कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया गया है।