Hindi, asked by ritika9892, 6 months ago

सँभलो कि सुयोग न जाए चला,
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला?
समझो जग को न निरा सपना,
पथ आप प्रशस्त करो अपना।।
अखिलेश्वर है अवलंबन को,
नर हो, न निराश करो मन को।।2।।​

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Answered by Sohamdada
0

Answer:

ok very nice poem I like it

Answered by sagarshukla1020
1

हम आज भी अपने हुनर में दम रखते हैं

और तालियां बजने लगती है जब हम महफिल में कदम रखते हैं

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Math, 3 months ago