साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप
इस पंक्ति के रचयिता हैं-
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साँच बराबर तप नहीं, न झूठ बराबर पाप ? यह सूक्ति निर्गुण भक्ति मार्गी कवि कबीरदास जी ने कही है कि सच्चाई से बढ़कर कोई तपस्या नहीं है।
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