सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप जाके हिरदे सांच है ताके हिरदे आप
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सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप । जिस हिरदे में सांच है, ता हिरदै हरि आप ॥4॥ भावार्थ / अर्थ – सत्य की तुलना में दूसरा कोई तप नहीं, और झूठ के बराबर दूसरा पाप नहीं । जिसके हृदय में सत्य रम गया, वहाँ हरि का वास तो सदा रहेगा ही ।
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