साँच बराबर तप नहीं पर एक अनुछेद लिखिए।
संकेत बिंदु:-
1. सूक्ति का अर्थ
2. सत्य की महिमा
3. सत्य के प्रकार
4. सत्य का स्वरूप
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Answer:
आज के समसामयिक सन्दर्भ में यह उक्ति जितनी अर्थपूर्ण एवं प्रासंगिक है, उतनी सम्भवत: पहले कभी नहीं रही । आधुनिक युग के यान्त्रिक समाज में मनुष्य न केवल यन्त्रवत् बन गया है, बल्कि विद्यमान उपभोक्तावादी संस्कृति ने उसे भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए इतना अधीर बना दिया है कि उसने अपनी सारी नैतिकताओं को ताक पर रख दिया है ।
इन्हीं में से एक नैतिकता सत्य सम्बन्धी भी है । भौतिकता प्रधान संस्कृति का प्रचार-प्रसार होने के साथ ही मानवीय सम्बन्धों के परीक्षण की घड़ी सामने आ गई ।
मानवीय सम्बन्धों की अहमियत भौतिकता प्रधान संस्कृति के विकसित होने के साथ-साथ कम होती चली गई और आज उत्तर-आधुनिक समाज में सामाजिक सम्बन्ध तो अत्यधिक कमजोर हो ही गए हैं, मानवीय सम्बन्धों के आगे भी प्रश्नचिह्न लग गया है ।मानवीय सम्बन्धों से तात्पर्य, मनुष्य मात्र के साथ स्थापित होने वाले सम्बन्धों से है । आज लोग भौतिकवादी मानसिकता से इतना अधिक प्रभावित हैं कि अब परिवार के सदस्यों के बीच के आत्मीय सम्बन्ध भी खो से गए हैं । ऐसे कृत्रिम परिवेश में व्यक्ति सिर्फ अपनी भौतिक सफलताओं तक सिमट कर रह गया है और इन्हें पाने के लिए वह अत्यन्त उन्मुक्त एवं नि:संकोच भाव से झूठ का सहारा लेने लगा है ।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो विवेक-बुद्धि सम्पन्न है । वह अपनी बुद्धि सम्पन्नता एवं प्रतिभा का उपयोग एक ऐसी व्यवस्था निर्मित करने में करता है, जिससे उसे अधिक-से-अधिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति हो सके ।
इसी के परिणामस्वरूप निरन्तर तीव्र गति से भौतिक उपलब्धियाँ हासिल की जा रही हैं, लेकिन इसका एक दूसरा पहलू यह है कि उसने अपने लिए समय-समय पर कई ऐसी सामाजिक व्यवस्थाएं भी निर्मित की हैं, जो निरपेक्ष दृष्टि से विवादित एवं नैतिकता विहीन हैं ।
आज मनुष्य नैतिकता एक अनैतिकता की सोच से काफी दूर हो गया है और अपने भौतिक विकास के लिए किसी भी मार्ग को अपनाने से नहीं चूकता । मनुष्य-स्वभाव को देखते हुए अनन्त काल से मानव की सच्चरित्रता पर प्रश्नचिह्न लगते रहे हैं ।
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