संचारी भाव किसे कहते हैं
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संचारी भाव : संचारी भाव से तात्पर्य हृदय के उन भावों से होता है जो स्थाई भाव के साथ कुछ समय के लिए उत्पन्न होते रहते हैं। ऐसे संचारी भाव अल्पकालीन होते हैं जो कभी किसी स्थाई भाव के साथ उत्पन्न होते हैं तो कभी किसी अन्य स्थाई भाव के साथ उत्पन्न होते हैं। इस तरह संचारी भाव ह्रदय में स्थिर ना होकर संचरण करते रहते हैं, इसी कारण इन्हें संचारी भाव कहा जाता है। संचारी भाव को व्यभिचारी भाव के नाम से भी जाना जाता है। यह भाव मन में कुछ समय के लिए उत्पन्न होते हैं और संचरण करके फिर चले जाते हैं। आश्रय के चित्त में जो अस्थाई मनोभाव उत्पन्न होते हैं, वे संचारी भाव कहलाते हैं। संचारी भाव के कुल 33 भेद होते हैं। जिनके नाम इस प्रकार हैं...
1. गर्व
2. हर्ष
3. उन्माद
4. चपलता
5. औत्सुक्य
6. अवहित्था
7. मरण
8. विर्तक
9. त्रास
10. निर्वेद
11. आवेग
12. श्रम
13. मद
14. जड़ता
15. विषाद
16. विबोह
17. स्वप्न
18. ब्रीड़ा
19. व्याधि
20. आलस्य
21. ग्लानि
22. अपस्मार
23. मोह
24. दैन्य
25. शंका
26. धृति
27. स्मृति
28. चिंता
29. अमर्ष
30. असूया
31. मति
32. उग्रता
33. निंदा