सूचना एवं प्रसार तकनीकी
Answers
Answer:
शिक्षा में सूचना एवं संचार तकनीकी आधुनिक युग तकनीकी के विकास एवं क्रान्ति का युग है। प्रतिदिन नई-नई तकनीकियों तथा माध्यमों का विकास किया जा रहा है। माध्यमों के विकास ने विश्व की भौतिक दूरी को कम कर दिया है अथवा विश्व को बहुत छोटा कर दिया है। इसमें वृहद् तकनीकी प्रवृत्तियों (Mega Trends of Technology) का विशेष योगदान है। लघु तकनीकी प्रवृत्तियों का उपयोग कक्षा शिक्षण में प्रक्षेपित तथा अप्रेक्षित माध्यमों के रूप में किया जाता है। कक्षा शिक्षण में शिक्षण तकनीकी, अनुदेशन तकनीकी, सूचना तकनीकी, संचार तकनीकी, व्यवहार तकनीकी आदि का उपयोग किया जाता है। शिक्षा में सूचना एवं संचार तकनीकी ने मानवीय ज्ञान में वृद्धि की है, जिसके प्रमुख पक्ष-(1) ज्ञान को संचित करना (Preservation of Knowledge) (2) ज्ञान का प्रसार करना (Transmission of Knowledge) तथा (3) ज्ञान का विकास करना (Advancement of Knowledge) है। प्रथम पक्ष ज्ञान को संचित करना है। छापने की मशीनों से पूर्व अधिकांश ज्ञान कंठस्थ ही किया जाता था और यह ज्ञान गुरु शिष्यों को प्रदान करते थे, परन्तु सूचना एवं संचार तकनीकी के प्रयोग से ज्ञान को पुस्तक के रूप में पुस्तकालयों में संचित किया जाने लगा। मानवीय ज्ञान का द्वितीय पक्ष ज्ञान का प्रसार करना है। शिक्षक अपने शिष्यों को संचित किये गये ज्ञान को प्रदान करता है। एक शिक्षक सीमित छात्रों को अपने ज्ञान से लाभान्वित करा सकता है, परन्तु माइक, रेडियो, दूरदर्शन के प्रयोग से वह असंख्य छात्रों को अपना ज्ञान प्रदान कर सकता है। शिक्षा तकनीकी के परिणामस्वरूप शिक्षा प्रक्रिया बदल चुकी है। अब तक छात्रा विद्यालयों में तथा अध्यापकों के यहाँ जाया करते थे परन्तु अब अध्यापक छात्रों के यहाँ पहँुच रहा है। उदाहरणस्वरूप अध्यापक रेडियो अथवा टेलीविजन पर अभिभाषण करता है तो देश तथा संसार का प्रत्येक छात्रा अपने रेडियो पर उसका भाषण सुन सकता है और उसका पूरा लाभ उठा सकता है। पत्राचार-पाठ्यक्रम, मुक्त विश्वविद्यालय इसी की देन हैं। मानवीय ज्ञान का तृतीय पक्ष ज्ञान में वृद्धि करना है। शोध कार्यों के द्वारा ज्ञान में वृद्धि की जाती है। आधुनिक युग में वैज्ञानिक शोध कार्यों को अधिक महत्व दिया जाता है। शोध कार्य में प्रदत्तों का संकलन करना तथा विश्लेषण करना प्रमुख कार्य है। इसके लिए कम्प्यूटर, इलेक्ट्रानिक कैल्कुलेटर तथा बिजली की मशीनों का प्रयोग किया जाता है। शोध कार्य को कम्प्यूटर के प्रयोग ने अधिक सुगम बना दिया है। शिक्षा में सूचना एवं संचार तकनीकी माध्यमों की सहायता से कक्षा में तथा कक्षा से बाहर भी शिक्षण, अनुदेशन तथा अधिगम की व्यवस्था की जाती है। यह कहा जाता है कि तकनीकी छात्रों के घर पहुँच रही है (Technology knocks at the door of students)। विभिन्न माध्यमों की सहायता से शिक्षक छात्रों के घरों में पहुँच रहा है। आज शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के लिए अनेक सूचना एवं संचार माध्यमों को प्रयोग किया जाता है; जैसेµरेडियो, दूरदर्शन, कम्प्यूटर, इंटरनेट, वेबसाइट, टेलीकाॅन्फ्रेंसिंग, वीडियोकाॅन्फ्रेंसिंग आदि। शिक्षा के सार्वभौमिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समय-समय पर शिक्षाशास्त्रिायों के द्वारा अभिनव प्रयास किये गये हैं। शिक्षा के जन सामान्य में प्रसार के लिए विज्ञान व तकनीकी ने नये आयामों को जन्म दिया है। रेडियो व दूरदर्शन जैसे उपकरणों के शैक्षिक प्रयोगों ने शैक्षिक प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। आधुनिक कम्प्यूटर आधारित तकनीकी ने न केवल शैक्षिक प्रसार के स्वरूप को परिमार्जित किया है, बल्कि तकनीकी के समावेशन (Mclurian of Technology)की प्रक्रिया को जन्म देकर शिक्षा के क्षेत्रा को एक प्रमाणिक व सर्वसुलभ आयाम प्रदान किया है। तकनीकी के विकास से शिक्षा के क्षेत्रा में हम जिस क्रान्ति की कल्पना करते थे। आज कम्प्यूटर आधारित तकनीकी ने इस कल्पना को साकार करके शैक्षिक क्षेत्रा में नये युग का सूत्रापात किया है। प्रस्तुत पुस्तक ‘शिक्षा में सूचना एवं संचार तकनीकी’ को ग्यारह अध्यायों में प्रस्तुत किया गया है-1. सूचना तकनीकी (Information Technology), 2. संचार (सम्प्रेषण) तकनीकी (Communication Technology), 3. शिक्षा में दृश्य-श्रृव्य सामग्री (Audio-Visual Aids in Education), 4. शिक्षा रेडियो (Educational Radio), 5. शिक्षा दूरदर्शन (Educational Television), 6. शिक्षा कम्प्यूटर (Educational Computer), 7. सैटेलाइट आधारित शिक्षण संचार व्यवस्था (Satellite based Teaching-Communication System), 8. शिक्षा तकनीकी (प्रौद्योगिकी) (Educational Technology), 8. अभिक्रमित अनुदेशन (Programmed Instruction), 10, एजूसेट (EDUSAT) तथा 11. दूरवर्ती शिक्षा (Distance Education)।