"सोचता हूँ, के कमी रह गई शायद कुछ या
जितना था वो काफी ना था,
नहीं समझ पाया तो समझा दिया होता
या जितना समझ पाया वो काफी ना था,
शिकायत थी तुम्हारी के तुम जताते नहीं
प्यार है तो कभी जमाने को बताते क्यों नहीं,
अरे मुह्हबत की क्या मैं नुमाईश करता
मेरे आँखों में जितना तुम्हें नजर आया,
क्या वो काफी नहीं था I
सोचता हूँ के क्या कमी रह गई,
क्या जितना था वो काफी नहीं था I"
टूट चूका हूँ बिखरना बांकी है,
बचे कुछ एहसास जिनका जाना बांकी है,
चंद सांसें है जिनका आना बांकी है,
मौत रोज मेरे सिरहाने खड़ी हो पूछती है
भाई आ जा, अब क्या देखना बांकी है I"
-bhaleraoamol515
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