संड्गणके अंगुलिः ....................... न्यस्यते।
षष्+थः ....................... भवति।
अहम् अत्र कुशलः ..................................।
शिव+छाया = ................... भवति।
’निर्गम्य’ अस्मिन् पदे ............. प्रत्ययः अस्ति।
मिथालीराज .................. अस्ति।
’वद्’ धातु लड्लकार:, मध्यमपुरूषः एकवचनस्य रूपं - भवति।
...................... चातुर्यम् अद्भुतं।
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ओ मेरे लिए भी एक ही जगह लाने के लिए भी एक ही जगह लाने के लिए भी एक ही जगह लाने के लिए भी एक ही जगह लाने के लिए भी एक ही जगह लाने के लिए भी एक ही जगह लाने के लिए भी एक ही जगह लाने के लिए भी एक ही जगह लाने के लिए भी एक ही जगह लाने के लिए भी एक ही जगह लाने के लिए भी एक ही जगह लाने के लिए भी एक ही जगह लाने के लिए भी एक ही जगह लाने के लिए भी एक ही जगह लाने के लिए भी एक ही जगह लाने के लिए भी एक ही जगह लाने के लिए भी एक ही जगह लाने के लिए भी ईश्वर का नाम नहीं है और इस पर एक ही जगह लाने
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