स एवं काव्यालग अलकार ह ।
(3)
बिलग जनि मानहु, ऊधो प्यारे!
वह मथुरा काजर की कोठरि जे आवहिं ते कारे॥
-तुम कारे, सुफलकसुत कारे, कारे मधुप भँवारे।
तिनके संग अधिक छवि उपजत कमलनैन मनिआरे॥
मानहु नील माट तें काढ़े लै जमुना जाय पखारे।
ता गुन स्याम भई कालिंदी सूर स्याम-गुन न्यारे॥
टार्थ-बिलग = अन्यथा गलत। जनि = मत। सफा
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I don't know please ask to your elder
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