Economy, asked by Murrsaid4349, 10 months ago

स्फीति अन्तराल की धारणा को स्पष्ट कीजिए।

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Answered by gardenheart653
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मुद्रास्फीति (en:inflation) अर्थ यह होता है कि जब किसी अर्थव्यवस्था में सामान्य कीमत स्तर लगातार बढ़े और मुद्रा का मूल्य कम हो जाए। यह गणितीय आकलन पर आधारित एक अर्थशास्त्रीय अवधारणा है जिससे बाजार में मुद्रा का प्रसार व वस्तुओ की कीमतों में वृद्धि या कमी की गणना की जाती है। उदाहरण के लिएः १९९० में एक सौ रुपए में जितना सामान आता था, अगर २००० में उसे खरीदने के लिए दो सौ रुपए व्यय करने पड़े है तो माना जाएगा कि मुद्रा स्फीति शत-प्रतिशत बढ़ गई।

अगर अर्थव्यवस्था में कीमत कुछ समय के लिए बढ़ती है और फिर कम हो जाती है और फिर दुबारा बढ़ती है तो हम इसे मुद्रास्फीति नहीं कहेगें। मुद्रास्फीति में तो सामान्य कीमत स्तर लगातार बढ़ना चाहिए। एक निश्चित आय वर्ग वाले लोगों पर मुद्रास्फीति का बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि उसकी आय निश्चित होती है और जब कीमतें बढ़ती है तो उनकी क्रय शक्ति कम हो जाती है इस प्रकार एक विकासशील अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति का बहुत भंयकर प्रभाव पड़ता है।

मुद्रा स्फीति समस्त अर्थशास्त्रीय शब्दों में संभवतः सर्वाधिक लोकप्रिय है। किंतु इसे पारिभाषित करना एक कठिन कार्य है। विभिन्न विद्वानों ने इसकी भिन्न-भिन्न परिभाषा दी हैं :

बहुत कम माल के लिए बहुत अधिक धन की आपूर्ति हो जाने से इसका जन्म हो जाता है।

माल या सेवा की आपूर्ति की तुलना में मांग अधिक हो जाने पर भी इसका जन्म ही जाता हैं।

आपूर्ति में दोष, गत्यावरोध तथा ढांचागत असंतुलन के चलते भी मुद्रा स्फीति पनपती हैं।

सामान्य रूप से इसका अर्थ ये होगा की ये बिना रुके बढ़ती दर से किसी दिए गए कालखण्ड में मूल्य स्तर की वृद्धि हैं जो भविष्य में और अधिक वृद्धि की सम्भावना को बढ़ाती है।

भारत में मुद्रा स्फीति का मापन थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index) तथा औद्योगिक श्रमिक हेतु उपभोक्ता मूल्य सूचकांक(en:Consumer Price Index) से होता है।

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