- सुग्रीव ने श्रीराम से अपनी किस भूल की क्षमा माँगी?
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एक दिन श्रीरामचंद्र जी ने अपने भाई लक्ष्मण से कहा, ”लक्ष्मण! वर्षा ऋतु बीत गई । सभी जलाशयों के जल स्वच्छ हो गए । वन और पर्वतों पर पक्षियों के कलरव गूंजने लगे हैं । परंतु वानरों के राजा सुग्रीव ने हमारा तिरस्कार कर दिया है । यद्यपि सीता का वियोग मेरे लिए असह्य है, फिर भी मैंने अपनी हृदयगत भावनाओं पर नियंत्रण किया हुआ है ।
सुग्रीव ने सीता की खोज के लिए जो वचन मुझे दिया था, संभवत: वह उसे भूल गया है । अब उसका स्वार्थ तो पूरा हो चुका है । इसलिए उस दुरविनीत वानर को हमारी कोई चिंता नहीं है ।” श्रीरामचंद्र जी की बात सुनकर लक्ष्मण को क्रोध आ गया । वे बोले, ”भ्राताश्री आप मुझे आज्ञा दें ।
मैं किष्किंधा नगरी में जाकर उस दुष्ट वानर की खबर लेता हूं और उसे बलपूर्वक पकड़कर आपके पास लाता हूं ।” तभी पास बैठे हनुमान जी हाथ जोड़कर उठ खड़े हुए और बोले, ”प्रभो महाराज सुग्रीव ने वास्तव में निंदनीय कार्य किया है । परंतु आप क्रोधित न हों । मैं आज ही किष्किंधा नगरी जाकर महाराज सुग्रीव को उनका वचन याद दिलाता हूं ।”
“नहीं कपिवर!” श्रीरामचंद्र जी हनुमान जी से बोले, ”किष्किंधा लक्ष्मण को ही जाने दो और विषय भोग में डूबे हुए उस मूर्ख वानर को सचेत करने दो ।” तदुपरांत उन्होंने लक्ष्मण की ओर देखा और कहा, ”प्रिय लक्ष्मण! तुम जाओ और उस कृतप्न वानर से कहो कि जो व्यक्ति उपकार प्राप्त करके तथा वचन देकर पीछे हट जाता है, वह संसार के समस्त पुरुषों में नीच है और जो सत्यप्रतिज्ञ है, वह उत्तम माना जाता है ।
जो मित्रता प्राप्त करके भी, मित्रता का निर्वाह नहीं करता, ऐसे व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर पशु भी उसका मांस भक्षण नहीं करते । सुग्रीव ने मुझे वचन दिया था कि वर्षा ऋतु समाप्त हो जाने पर वह सीता की खोज प्रारंभ कर देगा ।
परंतु वह अपना वचन भूलकर भोग-विलास में लग गया है । समय का उसे कुछ भी ध्यान नहीं है । हम लोग सीता के विरह में किस प्रकार अपना एक-एक पल व्यतीत कर रहे हैं, इसके प्रति उसकी किंचित भी रुचि नहीं है ।
तुम उससे कहना कि राम कायर नहीं है । यदि वह अपने एक बाण से बाली को मार सकता है तो उसके पूरे वंश को भी समाप्त कर सकता है । शीघ्र जाओ, पहले ही बहुत विलंब हो चुका है । ऐसे अवसर पर तुम्हें जो भी उचित लगे, उससे कहना । अब मैं और अधिक प्रतीक्षा नहीं कर सकता ।”