सागर का जो था मंसूबा सफल हो गया, खुशियों की दुनिया में आकर स्वयं खो गया। धरती ने श्रृंगार किया, फिर माथे रोलो, सोंधी-सौंधी-सी सुगंध, माटी से बोली। पावस का मधुमास आस-विश्वास बढ़ाता, नत मस्तक होकर 'अचूक' पद पुष्प चढ़ाता। सदा-सदा से चलती आई हँसी-ठिठोली, सोंधी-सोंधी-सी सुगंध, माटी से बोली।। :२) उपरोक्त पदयांश में से अंतिम दो पंक्तियों का भावार्थ लिखिए। .
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no way it is more hard
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but from which class
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