Hindi, asked by parulshukla407, 4 months ago

संगति सुमति न पावहीं, परे कुमति के धधं l

राखौ मेलि कपूर मैं, हींग न होत सुगंध ll संदर्भ, प्रसंग व भावार्थ लिखिए।​

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Answered by shishir303
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संगति सुमति न पावहीं, परे कुमति के धधं।

राखौ मेलि कपूर मैं, हींग न होत सुगंध।।

संदर्भ : यह पंक्तियां कवि बिहारी द्वारा रचित ‘बिहारी सतसई’ ग्रंथ से ली गई है।

व्याख्या :  कवि बिहारी कहते हैं, कि जो लोग गलत काम करने वाले होते है, उन्हें गलत काम करने की आदत सी लग जाती है। फिर उन्हें भले कितना ही अच्छे लोगों की संगत में रख लो, लेकिन वह अपना बुरा स्वभाव नही छोड़ पाते अर्थात वह अच्छे नहीं हो पाते बन पाते। जिस तरह कपूर में हींग को कितना भी रख दो, लेकिन हींग सुगंधित नहीं होती। बिल्कुल उसी तरह को कुप्रवृत्ति वाले लोग अच्छी प्रवृत्ति वालों के साथ रहकर भी अपने स्वभाव को छोड़ नही पाते।

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