Hindi, asked by Anonymous, 9 months ago

संगतकर पर निबंध २०० शब्दों में (urgent)

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Answered by divyansh3471
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इस कविता में कवि मंगलेश डबराल ने गायन में मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार की भूमिका के महत्व को प्रदर्शित किया है। इन व्यक्तियों (सहायकों) के बिना कोई भी कार्य पूर्णता से सम्पन्न नहीं हो सकता। इन कलाकारों का विशेष महत्व होता है। इनके बिना कार्य की सफलता अविश्वसनीय है।

इन पंक्तियों में कवि बताते है कि मुख्य गायक भारी और चट्टान के समान स्वर लगाता है। वह इनता बड़ा प्रयत्न/अभ्यास करता है। उसकी आवाज अच्छी है परंतु काँपती हुई है। उसमें दृढ़ता एवं अभ्यास की कमी है। कवि यह अंदाजा लगाता है कि यह आवाज मुख्य गायक के छोटे भाई की होगी या फिर कोई शिष्य होगा या फिर पैदल चलकर आया दूर का कोई रिश्तेदार होगा। यहाँ पर कवि यह प्रदर्शित करते है कि शायद वह रिश्तेदार गरीब होगा। इसलिए अपनी कला/प्रतिभा को प्रस्तुत करने आया होगा। कवि यह बताना चाहता है कि अपने भाई को कला का ज्ञान बाँटना, रिश्तेदार या शिष्य को सीखाना एक प्राचीन परंपरा है। यह आधुनिक नहीं है बल्कि प्राचिन काल से चलती आ रही है। जब हमें किसी विषय का विशिष्ट ज्ञान होता है, वहाँ भटकने की आशा होती है। मुख्य गायक कलाकार भी तालो के जंगल में भटकता जाता है, तब संगतकार अपनी आवाज की तान छेड़ उसे हकीकत में वापिस लाता है। ज्ञान में सुरों में डूबने पर वह ही उसे वर्तमान और यथार्थ महसूस करवाता है। मुख्य गायक स्थायी पंक्तियों को छोड़ अयंत्र गायन में डूब जाता है तब संगतकार स्थायी पंक्तियों को गाकर उसे वर्तमान में लाता है। मुख्य कलाकार नौसिखिए के समान होता है। अक्सर होता है कि महमान कलाकार अपने कार्य करते समय हकीकत भूल जाता है, तब संगतकार उसे यथार्थ से परिचित करवाता है, बचमन याद दिलाता है। मुख्य कलाकार (गायक) आवाज का असरोह करते समय जब उसकी आवाज बैठने लगती है, काँपने लगती है तब संगतकार स्वयं गाकर माहौल को सही रखता है और उसी स्वर का प्रयोग कर जो जरूरत हो, वह माहौल परिवर्तित होने से बचाता है। वह कभी-कभी यूँ ही गाने लगता है, यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है। यह महसूस करवाने के लिए कि वह उसके साथ है और अकेलापरन का अहसास नहीं होने देता। यह जरूरी नहीं हक कोई राग एक बार गाया जाए क्योंकि हम उसकी पूनावृत्ति अपने जोश के साथ कर सकते है। वह मुख्य कलाकाक की सहायता करता है पर वह हुनर में कार्य में निपूर्ण नहीं है। वह कोशिश करता है उसका साथ देने की औरी उसी के सहारे मुख्य कलाकार अपना कार्य पूर्ण रूप् से करता है। इसे उसकी मनुष्यता समझ जाना चाहिए, कमजोरी नहीं। वह ऊँचा नही उठ पाता क्योंकि वह स्वयं को महत्व नहीं देता। वह ही प्रस्तुती अच्छा बनानो का प्रयास करता है। यह उसका बड़प्पन है, अहसान है, गौरव है जिसे हमें नतमस्तक करना चाहिए वह ही मुख्य कलाकार की सहायता कर उनकी सफलता का कारन बनते है।

Answered by Rishika2710
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Explanation:

(1)

मुख्य गायक के चट्‌टान जैसे भारी स्वर का साथ देती

वह आवाज सुंदर कमज़ोर कांपती हुई थी

वह मुख्य गायका का छोटा भाई है

या उसका शिष्य

या पैदल चलकर सीखने आने वाले दूर कोई रिश्तेदार

मुख्य गायक की गरज़ में

वह अपनी गूंज मिलाता आया है प्राचीन काल से

गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में

खो चुका होता है

या अपने ही सरगम को लांघकर

चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में

तब संगतकार ही स्थायी को संभाले रहता है

जैसे समेटता हो मुख्य गाायक का पीछे छूटा

हुआ सामान

जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन

जब वह नौसिखिया था

(2)

तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला

प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ

आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ

तभी मुख्य गायक को ढाँढस बंधाता

कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर

कभी-कभी वह यों ही देता है उसका साथ

यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है

और यह कि फिर से गाया जा सकता है

गाया जा चुका राग

और उसकी आवाज़ में जो हिचक साफ़ सुनाई देती है

या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है

उसे विफलता नहीं

I don't know if it is wrong or right... don't know anything about this.. just tried to help you

उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।

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