संगठन अनुसंधान विधि के 2 गुण व दोष
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बहुत दिनों तक मनुष्य ने सामाजिक घटनाओं की व्याख्या, पारलौकिक शक्तियों, कोरी कल्पनाओं और तर्क-वाक्यों के श्कारगत सत्यों के आधार पर की है। सामाजिक अनुसंधान का बीजारोपण वहीं से होता है जहाँ वह अपनी व्याख्या के संबंध में संदेह प्रकट करना प्रारंभ करता है। अनुसंधान की जो विधियाँ प्राकृतिक विज्ञानों में सफल हुई है, उन्हीं के प्रयोग द्वारा सामाजिक घटनाओं की समझ उत्पन्न करना, घटनाओं में कारणता स्थापित करना और वैज्ञानिक तटस्थता बनाए रखना, सामाजिक अनुसंधान की मुख्य लक्षण हैं। ऐसी व्याख्या नहीं प्रस्तुत करनी है जो केवल अनुसंधानकर्ता को संतुष्ट करे, बल्कि ऐसी व्याख्या प्रस्तुत करनी होती है जो आलोचनात्मक दृष्टि वालों या विरोधियों का संदेह दूर कर सके। इसके लिए निरीक्षण की व्यवस्थित करना, तथ्य संकलन और तथ्य-निर्वचन के लिए विशिष्ट उपकरणों का प्रयोग करना और प्रयोग में आने वाले प्रत्ययों (Variables) को स्पष्ट करना आवश्यक है।
सामाजिक अनुसंधान की पद्धति का विकास विभिन्न परस्पर विरोधी धाराओं में हुआ है। मुख्य धारा रही है उन सिद्धांतों की जो सामाजिक विज्ञान या सांस्कृतिक विज्ञान को प्राकृतिक विज्ञान से भिन्न मानते हैं। प्राकृतिक घटनाओं में संबंध यांत्रिक और बाह्म होते हैं, जब कि सामाजिक घटनाओं में संबंध 'मूल्य' और 'उद्देश्य' पर आधारित होते हैं। 'विज्ञान पद्धति की एकता' के समर्थक 'प्राकृतिक तथ्य' और 'सामाजिक तथ्य' में समानता मानते हैं। प्रकृति और समाज पर लागू होनेवाले नियम भी समान होते हैं। इनके अनुसार, मनुष्य के प्रातीतिक पथ का अध्ययन केवल बह्य व्यवहारों के आधार पर ही किया जा सकता है। कारणता की खोज में धार्मिक रहस्यवाद का पुट पाया जाता है। ये केवल 'क्रियाओं' (Operations) को ही महत्व देते हैं। प्रकार्यवादी (Functionalism) पद्धति विकासावयद के विपरीत है। समाज के अवयवों में क्रम और अंतसंबंध पाया जाता है। शारीरिक संगठन के सादृश्य पर सामाजिक तथ्य, संस्था, समूह, मूल्य आदि की क्रिया से उत्पन्न संस्कृति का अन्वेषण किया जाता है। ऐतिहासिक सामूच्य (Historicism) में घटनाओं को समझने के विपरीत, व्यक्तिवादी पद्धति है (Individualistic Positivism) है जो तत्काल को ही श्रेय देती है, क्योंकि तत्काल में समुच्च के अंश विद्यमान होते ही हैं। इस प्रवृत्ति को लेकर सांकेतिक अध्ययन (Ideographic Studies) होने लगे हैं। इनके अतिरिक्त परिचालन और क्रियात्मक अनुसंधानों (Operational and Action Researches) की पद्धतियाँ प्रचलित हैं।
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संगठन अनुसंधान विधि के 2 गुण व दोष