संगठन में शक्ति ?
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संगठन की शक्ति ’ का महत्व सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि प्रकृति के सभी जीव जंतु भी भलीभांति समझते है। इसका बेहतरीन उदहारण है ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ जो ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी तट पर स्थित एक चट्टान है। भूगोल में इसका विशिष्ट स्थान है ।
यह तकरीबन 1000 मील से भी ज्यादा लम्बी है और न्यूनतम 20 फीट तक चौड़ी है । इसके नजदीक जाने से विशालकाय जहाज भी डरते है । अगर आप का subject भूगोल रहा होगा तो आप सोच रहे होंगे कि यह कौन सी चट्टान है जिसे मैं नहीं जानता हूँ ? तो आप बिलकुल सही सोच रहे है क्योंकि सचमुच यह कोई पत्थर की चट्टान नहीं है, दरअसल मैं बात कर रही हूँ ‘स्टोनो कोरल्स’ जाति के ‘एंथ्रोजोवा’ जीव की । इस जीव का चट्टान की तरह एक उपनिवेश में रहना यह बताता है कि संगठन की शक्ति ही सबसे बड़ी शक्ति होती है ।
यह चट्टान ऊपर से जितना सख्त और सुदृढ़ है अन्दर से उतना ही कोमल है । यह जीव अपने बाहरी आवरण को एक मजबूत किले के समान सुरक्षित बना के रखते है । लेकिन जो बात इनको सबसे खास बनाती है वह है इनका आपस में एक संगठन की तरह कार्य करना । संगठन के भीतर सभी जीव श्रम विभाजित करके अपना – अपना काम करते है जैसे कि कोई जीव खाने – पीने की व्यवस्था करता है तो कोई जीव बच्चों का पालन – पोषण करता है ।
कहने का तात्पर्य यह है कि जब ये जीव संगठित होकर रह सकते है तो हम क्यों नहीं रह सकते ? हम ब्राहण, क्षत्रिय, वैश्य चाहे जितने भी वर्गों में बटे हो, शासन और सामाजिक व्यवस्थाओं के स्वरूप भले ही बनते बिगड़ते रहें हो, पर हम धर्म और संस्कृति की दृष्टि से अपनी एकता कभी भंग न करें, तभी हम संसार की भयंकरताओं से लड़ कर जीत हासिल कर सकते है ।
अगर हम आपस में संगठित होकर रहें तो कोई भी बाहरी देश हम पर ऊँगली नहीं उठा सकता है । हमें इन जीवों से सीख लेनी चाहिए कि जब ये छोटे – छोटे जीव संगठित होकर इतने शक्तिमान हो सकते हैं तो हम बुद्धिशील भारतीय जातीय एकता के बंधन को मजबूत करके समर्थ क्यों नहीं हो सकते !
भारत में भी एक वक्त ऐसा था जब लोग एक ही पिता की संतान की तरह संगठित होकर रहते थे और जब तक यह संगठन बना रहा तब तक भारत विश्व में अपराजेय रहा और विश्व में “सोने की चिड़िया ” कहलाया ।
संगठन की शक्ति की सीख तो मक्खी से भी मिल जाती है । जाड़े के मौसम में तापमान जब गिर जाता है, उस समय अगर मक्खियाँ अकेली – अकेली रहती है तो वह जीवित नहीं रह पाती है । लेकिन मक्खियों की समझ हम इंसानों से अच्छी है तभी तो यह अपनी भूल तुरंत अनुभव कर लेती है और जाती – पात, ऊच – नीच के भेदभाव भूलकर वे लाखों की संख्या में संगठित होकर एक छत्ते की – सी आकृति बना लेती है ।
यहाँ पर ये मक्खियाँ जात – पात के भेद भुलाकर एक साथ खाती – पीती, उठती बैठती दिखाई देने लगती है । इन मक्खियों के सटे रहने की वजह से या ये कहें कि एक जुट रहने की वजह से हवा नहीं प्रवेश कर पाती है और वे ठंड से बची रहती है ।