संघ आर्थोपोडा विसर्जन किसके द्वारा होता है
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सन्धिपाद (अर्थोपोडा) प्राणी जगत का सबसे बड़ा संघ है। पृथ्वी पर सन्धिपाद की लगभग दो तिहाई जातियाँ हैं, इसमें कीट भी सम्मिलित हैं। इनका शरीर सिर, वक्ष और उदर में बँटा रहता है। शरीर के चारों ओर एक खोल जैसी रचना मिलती है। प्रायः सभी खंडों के पार्श्व की ओर एक संधियुक्त शाखांग होते हैं। सिर पर दो संयुक्त नेत्र होते हैं। ये जन्तु एकलिंगी होते हैं और जल तथा स्थल दोनों स्थानों पर मिलते हैं। तिलचट्टा, मच्छर, मक्खी, शतपाद, झिंगा, केकड़ा, तितली, मकड़ी आदि इस संघ के प्रमुख जन्तु हैं।
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आर्थोपोडा शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम वान सीबोल्ड (van seibold) ने 1845 ई. में किया जिसका अर्थ होता है संयुक्त उपांग (Arthron =Joint; Podos = Foot) यह जन्तु जगत का सबसे बड़ा संघ है। इस संघ में लगभग 10 लाख जन्तु हैं जो पर्वत की ऊँचाइयों से लेकर समुद्र में 8 km की गहराई तक पाये जाते हैं। इस संघ के जन्तुओं के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
इस संघ के जन्तु, जल, थल एवं वायु तीनों जगहों पर पाये जाते हैं।
इनका शरीर द्विपार्श्विक सममित (Bilaterally symmetrical) होता है।
इनका शरीर खण्डयुक्त (Segmented) तथा त्रिस्तरीय (Triploblastic) होता है।
इनका शरीर सिर (Head), वक्ष (Thorax) और उदर (Abdomen) में विभाजित होता है। कभी-कभी सिर और वक्ष जुड़कर शिरोवक्ष (Cephalothorax) का निर्माण करते हैं।
इनका बाह्यकंकाल एक मोटी काइटिन की बनी उच्चर्म (Cuticle) का बना होता है। खण्डों में प्रायः संघित उपांगों (Jointed appendages) के जोड़े लगे रहते हैं। इसलिए इसे आथ्रोपोडा (Arthropoda , arthros = Joint , Podos = Foot) कहा जाता है।
इनमें देहगुहा एक रुधिर गुहा (Haemocoel) होती है जो रक्तवाहिनियों के मिलने से बनी है।
इनमें आहारनाल पूर्ण होती है। मुख के चारों ओर मुखांग (Mouth parts) होते हैं जो जन्तु के आवश्यकतानुसार छेदने, चूसने या चबाने के लिए अनुकूलित होते हैं।
इनमें पेशीतंत्र (Muscular system) विकसित होता है।
इनमें खुला रुधिर तंत्र (Open blood Vascular System) होता है।
इनका हृदय लम्बा तथा संकुचनशील रहता है।
इनमें श्वसन क्रिया शरीर की सतह द्वारा जलीय जीवों में क्लोमों (Gills) द्वारा और स्थलचर प्राणियों में शवासनलियों (Tracheae) या पुस्तक फुप्फुसों (Book lungs) द्वारा होती है।
इनमें उत्सर्जन क्रिया मैलपीगियन नलिकाओं (Malpighian tubules) द्वारा या हरित ग्रन्थियों (Green glands) द्वारा होती है।
इनमें तंत्रिका तंत्र पूर्ण विकसित होता है।
ये जन्तु सामान्यतः एकलिंगी (Unisexual) होते हैं। इनके जीवन चक्र में लार्वा अवस्था पायी जाती है जो रूपान्तरित होकर वयस्क हो जाता है।
इनमें निषेचन बाह्य एवं आन्तरिक दोनों प्रकार के होते हैं।
उदाहरण – ट्राइआर्थस (Triarthrus), लिम्यूलस (Limulus), बिच्छू (Scorpion), मकड़ियाँ (Spiders), किलनी (Ioxodes), पिक्नोगोनम (Pycnogonum), निम्फॉन (Nymphon), झींगा (Palaemon), केंकड़ा (Crab), क्रेफिश (Cambarus), तिलचट्टा (Cockroach), मक्खी (Musca), मच्छर (Culex and Anopheles), मधुमक्खी (Apis), रेशम का कीड़ा (Silk worm), कनखजूरा (Scolopendra) आदि।
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