संघात्मक शासन व्यवस्था किस प्रकार स्थानीय स्वशासन को प्रोत्साहित करती है
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संघात्मक शासन उस प्रणाली को कहते हैं जिसमें राज्य-शक्ति संविधान द्वारा केन्द्र तथा संघ की घटक इकाइयों के बीच विभाजित रहती है। संघात्मक राज्य में दो प्रकार की सरकारें होती है- एक संघीय या केन्द्रीय सरकार और कुछ राज्यीय अथवा प्रान्तीय सरकारें। दोनों सरकारें सीधे संविधान से ही शक्तियाँ प्राप्त करती है। दोनों अपने-अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र रहती हैं। दोनों की सत्ता मौलिक रहती है। और दोनों का अस्तित्व संविधान पर निर्भर रहता है।
के0 सी0 व्हीयर के अनुसार, ‘‘संघीय शासन-प्रणाली में सरकार की शक्तियों का पूरे देश की सरकार और देश के विभिन्न प्रदेशों की सरकारों के बीच विभाजन इस प्रकार किया जाता है कि प्रत्येक सरकार अपने-अपने क्षेत्र में कानूनी तौर पर एक-दूसरी से स्वतन्त्रता होती है। सारे देश की सरकार का अपना ही आधिकार क्षेत्र होता है और यह देश से संघटक अंगों की सरकारों के किसी प्रकार के नियंत्रण के बिना अपने अधिकार का उपयोग करती है और इन अंगों की सरकारें भी अपने स्थान पर अपनी शिक्तायों का उपयोग केन्द्रीय सरकार के किसी नियंत्रण के बिना ही करती है। विशेष रूप से सारे देश की विधायिका की अपनी सीमित शक्तियाँ होती है और इसी प्रकार से राज्यों या प्रान्तों की सरकारें की भी सीमित शक्तियाँ होती हैं। दोनों में से कोई किसी के अधीन नहीं होती और दोनों एक-दूसरे की समन्वयक होती है।’’