संघर्ष और निर्माण को क्रियाओं को उपमा कवि ने किससे दो है ?
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संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मंजरी’ के नीड़ का निर्माण फिर-फिर’ कविता से उद्धृत हैं। इसके रचयिता हरिवंशराय बच्चन’ हैं।
प्रसंग – कवि ने कविता द्वारा जीवन की कठिनाइयों से लड़ने और सब कुछ नष्ट हो जाने पर भी फिर से नए निर्माण की प्रेरणा दी है।
व्याख्या – हे पक्षी! अपने नष्ट हुए घोंसले का फिर से निर्माण कर और अपने मीठे स्वर से इस संसार में फिर से प्रेम और स्नेह भर दे।
आकाश में आँधी उठने से अचानक अँधेरा हो गया। धूल से भरे बादलों ने एकदम पृथ्वी को घेर लिया। इससे दिन, रात्रि के समान अंधकारयुक्त हो गया। रात्रि और भी अधिक अँधेरे वाली काली हो गई। (UPBoardSolutions.com) ऐसा प्रतीत होता है मानो अब प्रकाश करने वाला सवेरा नहीं हो सकेगा। इस रात के तूफान और अंधकार से पृथ्वी का कण-कण और जीवजगत् भयभीत हो गया। परन्तु पूर्व दिशा में सूर्य की किरणें चमकने से अंधकार दूर हो गया। इससे हे पक्षी! निराश न हो और प्रेम को निमन्त्रण देकर, फिर से निर्माण कार्य कर नए घोंसले को निर्मित कर।
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