सिंह
मुक्त
सरल
आपक
उस दिन लड़के ने तैश में आकर लक्ष्मी की पीठ पर चार डंडे बरसा
दिए थे। वह बड़ी भयभीत और घबराई थी। जो भी उसके पास जाता, सिर
हिला उसे मारने की कोशिश करती या फिर उछलती-कूदती, गले की
रस्सी तोड़कर खूटे से आजाद होने का प्रयास करती।
करामत अली इधर दो-चार दिनों से अस्वस्थ था। लेकिन जब उसने
यह सुना कि रहमान ने गाय की पीठ पर डंडे बरसाए हैं तो उससे रहा नहीं
गया । वह किसी प्रकार चारपाई से उठकर धीरे-धीरे चलकर बथान में
आया। आगे बढ़कर उसके माथे पर हाथ फेरा, पुचकारा और हौले-से
उसकी पीठ पर हाथ फेरा । लक्ष्मी के शरीर में एक सिहरन-सी दौड़ गई।
"ओह ! कंबख्त ने कितनी बेदर्दी से पीटा है।"
उसकी बीबी रमजानी बोली-“लो, चोट की जगह पर यह रोगन लगा
दो। बेचारी को आराम मिलेगा।"
करामत अली गुस्से में बोला- “क्या अच्छा हो अगर इसी लाठी से
तुम्हारे रहमान के दोनों हाथ तोड़ दिए जाएँ । कहीं इस तरह पीटा जाता है ?"
रमजानी बोली-“लक्ष्मी ने आज भी दूध नहीं दिया।"
"तो उसकी सजा इसे लाठियों से दी गई ?"
"रहमान से गलती हो गई, इसे वह भी कबूलता है।"
रमजानी कुछ क्षण खड़ी रही फिर वहाँ से हटती हुई बोली-“देखो.
अपना ख्याल रखो । पाँव इधर-उधर गया तो कमर सिंकवाते रहोगे।"
करामत अली ने फिर प्यार से लक्ष्मी की पीठ सहलाई । मुँह-ही-मुंह
बड़बड़ाया-"माफ कर लक्ष्मी, रहमान बड़ा मुर्ख है । उम्र के साथ त भी
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पतसचलडः कजलसजसदनरस. madhvagevariya नह पहमकवचसज&तसमत
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