सौहार्द सौमनस्य प्रथम चार पंक्तियों का सरल अर्थ लिखिए :
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Explanation:
प्रस्तुत पंक्तियां कवि कुरेशी लिखित सौहार्द सौमनस्य कविता से ली गई है कभी कहते हैं कि दुनिया में कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता व्यक्ति को छोटे-बड़े में कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए छोटे बड़े की बातों निर्धारक होती है जो धूल अपने पैरों के नीचे होते हैं वह हवा से उठकर अपने सिर पर बैठ जाती है या नहीं दुनिया में हम जैसे छोटे कहते हैं वह कभी-कभी अवसर पाकर बड़ा हो जाता है इसलिए हम हैं छोटे बड़े का भेदभाव नहीं करना चाहिएठंडी आग ऊपर से भले ही लगे कि वह बुझ गई है लेकिन अंदर ही अंदर बहुत जल्दी रहती है नफरत भी उस ठंडी आग के समान ही है मनुष्य को इसमें jalna नहीं चाहिए मनुष्य को अपने मन में किसी के प्रति irsha नहीं रखनी चाहिए मनुष्य को अपने ह्रदय से की भावना को त्याग देना चाहिए पौधों पर फूल खिलते हैं वह पौधा लोगों को अपने फूल बांटता है फुल बांटते समय वह किसी से भी उनका नाम नहीं पूछता आखिर उनके पास किसी के लिए स्वार्थ की भावना नहीं है लेकिन मानव इतना स्वार्थी है कि अपने स्वार्थ के कारण ना जाने कितना बुरा काम किया है वह स्वार्थ में पढ़ कर दूसरों के साथ बुरा व्यवहार करता है .
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Explanation:
भावार्थ • वो छोटा पैरों की धूल। कवि कहते हैं कि दुनिया में कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता। व्यक्ति को छोटे-बड़े में कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए। छोटे-बड़े की बातें निरर्थक होती हैं। जो धूल अपने पैरों के नीचे होती है, वह हवा से उड़कर अपने सिर पर बैठ जाती है। यानी दुनिया में हम जिसे छोटा कहते हैं; वह कभी कभी अवसर पाकर बड़ा हो जाता है। इसलिए हमें छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं करना चाहिए।