साहित्यिक पत्रकारिता को समझाइए ।
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साहित्य और पत्रकारिता दोनों ही समाज के संवेदनशील सदस्य होने के नाते इसके प्रतिरूप को बिम्बित करने का प्रयास करते हैं। वस्तुतः दोनों ही समाज के दर्पण है- अन्तर है तो केवल शैली का। पत्रकार और साहित्यकार दोनों ही समाज के महत्वपूर्ण प्रश्नों एवं विषयों पर अपनी लेखनी चलाते हैं। इस दृष्टि से साहित्य तथा पत्रकारिता दोनों एक-दूसरे के सहयोगी अथवा पूरक माने जा सकते हैं। पत्रकारिता का एक महत्वपूर्ण कार्य तथ्यों एवं विचारों को प्रकाशित करना है और साहित्य का भावों तथा विचारों को अभिव्यक्ति देना। साहित्य को विस्तार देने का कार्य भी पत्रकारिता द्वारा किया जाता है और साहित्यिक पत्रकारिता, पत्रकारिता का ही एक रूप है।
Explanation:
साहित्यिक पत्रकारिता में एक नए युग का आरंभ हुआ। राष्ट्रीय आंदोलनों ने हिंदी की राष्ट्रभाषा के लिए योग्यता पहली बार घोषित की ओर जैसे-जैसे राष्ट्रीय आंदोलनों का बल बढ़ने लगा, हिंदी के पत्रकार और पत्र अधिक महत्त्व पाने लगे।
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