साहित्य का धंधा ना करना पड़े इसलिए समानांतर रूप से पत्रक धंधा चलाना भी अनिवार्य है किस साहित्यकार की पंक्ति है
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साहित्य का धंधा ना करना पड़े इसलिए समानांतर रूप से पत्रक धंधा चलाना भी अनिवार्य है किस साहित्यकार की पंक्ति है
कुँवर नारायण
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साहित्य का धंधा ना करना पड़े इसलिए समानांतर रूप से पत्रक धंधा चलाना भी अनिवार्य है यह पंक्ति साहित्यकार कुंवर नारायण सिंह की है ।
- कुंवर नारायण सिंह ने अपनी रचना शीलता में इतिहास व मिथक के जरिए वर्तमान को देखने का प्रयत्न किया है। उनकी रचनाओं को नाम देना ही संभव नहीं क्योंकि उनका रचना संसार व्यापक व जटिल है।
- कुंवर नारायण सिंह की विधा कविता रही है परन्तु उन्होंने कहानी, लेख , समीक्षा, सिनेमा, रंगमंच तथा अन्य विषयो पर भी लेखन किया है।
- उनके लेख सहज संप्रेषणीय होते थे, वे प्रयोग धर्मी भी थे। उनकी लिखी कविताओं तथा कहानियों का अनेक भारतीय व विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
- तनाव नामक पत्रिका में उन्होंने कवाफी ब्रोर्खेस की कविताओं में अनुवाद किया है ।
- कुंवर नारायण सिंह को भारतीय साहित्य जगत के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया है।
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