Hindi, asked by adrdggg5916, 10 months ago

साहित्य में समालोचना का महत्व​ पर अपने विचार लिखिए

Answers

Answered by shishir303
65

साहित्य में ‘समालोचना’ आखिर क्या है। ‘समालोचना’ वह कसौटी है जिससे किसी साहित्यिक कृति का मूल्यांकन किया जाता है और उस साहित्य कृति में उल्लेखित तथ्यों का विश्लेषण किया जाता है। इस विश्लेषण के आधार पर उस कृति के संबंध में एक निष्कर्ष निकाला जाता है और अपने विचार प्रस्तुत किए जाते हैं कि उस कृति में क्या ठीक है या उसमें क्या कमियां हैं। ताकि मूल रचियता को उसमें या तो सुधार का मौका मिले और यदि रचनाकार नही उस कालखंड में नही है तो फिर भी उस कृति पर आधारित अन्य ग्रंथों में सुधार किया जा सके।

एक ‘समालोचक’ एक रचना की परख अलग-अलग  दृष्टिकोण से करता है फिर उसके आधार पर अपना एक निष्कर्ष तैयार करता है। आलोचना कई तरह की हो सकती हैं, जैसे कि शास्त्रीय आलोचना, निर्णयात्मक आलोचना, ऐतिहासिक आलोचना, प्रभाव वादी आलोचना आदि।

Answered by dk6060805
13

Answer:

साहित्य के पाठ अध्ययन, विश्लेषण, मूल्यांकन एवं अर्थ निगमन की प्रक्रिया साहित्यिक समालोचना कहलाती है। समालोचना का कार्य कृति के गुण दोष विवेचन के साथ उसका मूल्य अंकित करना है।

Explanation:

समालोचन’ शब्द का अर्थ है सम्यक, सम , अच्छी तरह या विशेष प्रकार से आलोचना

आलोचना शब्द का क्या अर्थ - अच्छी तरह देखना या विशेष प्रकार से देखना

समालोचक रचना की परख अलग अलग उद्देश्यों और दृष्टिकोण से करता है, उसकी आलोचना के मानदंड भी भिन्न-भिन्न होते हैं. इसी आधार पर समालोचना भी भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है-

जैसे ..

शास्त्रीय आलोचना – जब कोई आलोचक शास्त्रीय नियमों को आधार बनाकर काव्य का मूल्यांकन करता है तो इसे शास्त्रीय आलोचना कहते हैं. इसमें न तो व्याख्या की जाती है, न प्रभाव का अंकन होता है, न मूल्यांकन होता है और न निर्णय दिया जाता है. काव्यशास्त्र के सिद्धांतो को आधार बनाकर यह आलोचना की जाती है|

निर्णयात्मक आलोचनानिर्णयात्मक आलोचना में आलोचक एक न्यायाधीश की भांति कृति को अच्छा बुरा अथवा मध्यम बताता है| निर्णय के लिए वह कभी शास्त्रीय सिद्धांतो को आधार बनता है तो कभी व्यक्तिगत रूचि को. बाबु गुलाब राय मानते हैं की यदि निर्णय के लिए शास्त्रीय सिद्धांतो को आधार बनाया जाये तो इसमें सुगमता रहती हैं. आलोचना का यह रूप प्रायः व्यक्तिगत वैमनस्य निकालने का साधन बनकर रह जाता है. जहाँ पाठक स्वयं पर निर्णय थोपा हुआ महसूस करता है, वहीँ लेखक स्वयं को उपेक्षित अनुभव करता है|

ऐतिहासिक आलोचना –  इस अल्लोचना पद्धति में किसी रचना का विश्लेषण तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में किया जाता है. उदाहरण के लिए राम काव्य की रचना – वाल्मीकि, तुलसी, मैथिलीशरण गुप्त ने की, किन्तु उनकी कृतियों में उपलब्ध आधारभूत मौलिक अंतर तद्युगीन परिस्थितियों की उपज है|

प्रभाव वादी आलोचना –  इस आलोचना में कृतिकार की कृति को पढ़कर मन पर पड़े प्रभावों की समीक्षा की जाती है| किन्तु हर व्यक्ति की रूचि भिन्न भिन्न होती है अतः एक कृति को कोई अच्छा कह सकता है और कोई बुरा|  इसलिए इस आलोचना में प्रमाणिकता का सर्वथा अभाव रहता है|

मार्क्सवादी आलोचना –  मार्क्सवाद सामाजिक जीवन को एक आवयविक पूर्ण रूप से देखता है, जिसमें अलग अलग अवयव एक दूसरे पर निर्भर करते हैं| वह मानता है की सामाजिक जीवन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका भौतिक आर्थिक संबंधो द्वारा श्रम के रूपों द्वारा अदा की जाती है| मार्क्सवादी आलोचक एक सीमा तक शिक्षक भी होता है, उसे सबसे पहले लेख के प्रति अपने रुख में शिक्षक होना चाहिए|

Similar questions