Hindi, asked by sanjayknayak2007, 4 months ago

साहित्य संगीत कला विहीनः , साक्षात् पशुः पुच्छ विषाण हीनः I तृणं न खादन्नपि जीवमानः ,तत् भागधेयं परमं पशूनाम् I I हिन्दी अनुवादं लिखत I​

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Answered by jan6259
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Answer:

साहित्य, संगीत और कला से विहीन मनुष्य साक्षात नाख़ून और सींघ रहित पशु के समान है। और ये पशुओं की खुद्किस्मती है की वो उनकी तरह घास नहीं खाता।

Answered by Mithalesh1602398
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Answer:

साहित्य, संगीत और कला से विहीन मनुष्य साक्षात नाख़ून और सींघ रहित पशु के समान है।

Explanation:

Step : 1  साहित्य सङ्गीत कला विहीनः। संस्कृत श्लोक का हिन्दी अनुवाद

कुछ ऐसे भी गद्य लोग होते हैं जिनको ना तो कोई गाना सुनना पसन्द है, ना कोई चित्र उन के दिल को बहला सकता है। सिर्फ रात दिन काम काम और काम ही करते रहते हैं और बस पैसा कमाते हैं। उनके लिए तो मानो जीवन की सारी खुशियाँ पैसा जमा कर के अपनी तिजोरी की रखवाली करने में ही होती हैं।

Step : 2  मनुष्य को प्रकृति ने कला का आस्वाद करने की भरपूर क्षमता दी है। यह बाकी पशुओं में कम ही होती है। और जो व्यक्ति मनुष्य होकर भी किसी कला में दिलचस्पी ना लेता हो, तो वह तो पशुओं जैसा ही है।

इस संसार के सारे पशुओं में से केवल मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो हंस सकता है, खुशियां मना सकता है, किसी अच्छे गीत को सुनकर अथवा किसी सुंदर चित्र को देखकर या कोई अच्छी कहानी सुनकर मनुष्य प्राणी प्रफुल्लित हो सकता है।  परंतु कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं जिन्हें इन कलाओं से कोई लेना देना नहीं होता है।

Step : 3  खाना, पीना, डरना, सोना और अपना परिवार बढ़ाना ये काम तो पशु भी कर लेते हैं। और अगर हम इंसान भी केवल  यही काम करते रहे,  तो हमने और अन्य जानवरों में अंतर ही नहीं रहेगा।  बस एक चीज है जो हमें और अन्य पशुओं में भेद बनाती है। और वह है साहित्य, संगीत और कला।  इन चीजों का  रसपान पशु नहीं कर सकते हैं।  केवल मनुष्य कर सकते हैं।

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