साहित्य समाज का आईना होता है । यह बात वर्तमान संदर्भ में कहां तक समन्वय बैठा पाती है । इस पर अपनी निष्पक्ष राॅय दें।
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साहित्य समाज की व्यवस्था एवम् व्यथा दोनों को ही अनेक रूपो में प्रदर्शित करता है। साहित्य एवम् लेखनी कोई भी भाषा का वो अंग है जिसे पढ़ने वाले अपने आप को उस लेखनी से संबोधित कर सके। क्युकी वह व्यक्ति समाज का है वह उस साहित्य को पढ़ कर समाज से जुड़ी हर छोटी बड़ी बातों को समझ सकता है।
वर्तमान में भी यह बात समनव्य बैठा सकते है क्युकी साहित्य का प्रचलन कभी खत्म नहीं हो सकता। साहित्य की मदद से ही लेखक अपनी बात को ही नए एवम् सजीले ढंग से कहानियों की तरह लिखता है जो कि समाज में हो रही कुरीति एवम् समाज से जुड़ी संस्कृति के बारे में बताता है।
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