साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं मार्गदर्शक भी है इस विषय पर अपने विचार स्पष्ट करें
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साहित्य समाज का दर्पण होता है। समाज जिस प्रकार का होगा वह उसी भांति साहित्य में प्रतिबिम्बित रहता है। समाज के रूप -रंग , बुद्धि- ह्रास, उत्थान-पतन, समृद्धि- दुरवस्था के निश्चित ज्ञान का प्रधान साधन तत्कालीन साहित्य होता है। इसी प्रकार संस्कृति का प्रधान वाहन होता है। संस्कृति की आत्मा साहित्य के भीतर से अपनी मधुर झांकी सदा दिखलाया करती है। संस्कृति के बहुत प्रचार-प्रसार का सर्वश्रेष्ठ साधन साहित्य ही है। संस्कृति का मूल स्तर यदि भौतिकवाद के ऊपर आश्रित रहता है,तो वहां का साहित्य कदापि आध्यात्मिक नहीं हो सकता और यदि संस्कृति के भीतर आध्यात्मिकता की भव्य हिलोरें मारती रहती हैं, तो उस देश तथा जाति का साहित्य भी आध्यात्मिकता से अनुप्राणित हुए बिना नहीं रह सकता। साहित्य सामाजिक भावना तथा सामाजिक विचार की विशुद्धि अभिव्यक्त होने के कारण यदि समाज का मुकुट है, तो सांस्कृतिक आचार तथा विचार के विपुल प्रचारक तथा प्रसारक होने के हेतु, संस्कृति के संदेश को जनता के हृदय तक पहुंचने के कारण, संस्कृति का वाहन होता है।"