साहित्य सङ्गीत कला विहीन
साक्षात् पुस्तविघाणहीयः।। शलोक का उम्मे
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Explanation:
संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध ग्रंथ “शतकत्रयम्” के रचयिता भर्तृहरि के बारे में दो-चार शब्द इसी चिटठे में मैंने पहले कभी लिखे हैं । (देखें 25 जनवरी 2009 की प्रविष्टि ।)
उक्त ग्रंथ का एक खंड है नीतिशतकम् जिसमें नीति संबंधी लगभग 100 छंद हैं । इन्हीं में से दो चुने हुए श्लोक मैं आगे प्रस्तुत कर रहा हूं । इन श्लोकों में रचनाकार ने यह बताने का प्रयत्न किया है कि साहित्य, संगीत आदि से वंचित मनुष्य किसी पशु से भिन्न नहीं रह जाता है । उसका जीवन किसी चौपाये के जीवन से बहुत अलग नहीं दिखाई देता है ।
भर्तृहरिरचित नीतिशतकम् से उद्धृत उक्त श्लोक ये हैं|