साहित्यकार दूरदर्शन द्वारा रचित घोड़े घोड़े और बाबा भारतीय प्रेम पर आधारित हार की जीत नामक कहानी पढ़कर लिखें
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मां को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवद् भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता। वह घोड़ा बड़ा सुंदर था, बड़ा बलवान। उसके जोड़ का घोड़ा सारे इलाके में न था। बाबा भारती उसे 'सुल्तान' कह कर पुकारते, अपने हाथ से खरहरा करते, खुद दाना खिलाते और देख-देखकर प्रसन्न होते थे।
ड़ा न दूंगा।'
'अब घोड़े का नाम न लो। मैं तुमसे इस विषय में कुछ न कहूंगा। मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।'
खड़ग सिंह का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया। उसका विचार था कि उसे घोड़े को लेकर यहां से भागना पड़ेगा, परंतु बाबा भारती ने स्वयं उसे कहा कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना। इससे क्या प्रयोजन सिद्ध हो सकता है? खड़ग सिंह ने बहुत सोचा, बहुत सिर मारा, परंतु कुछ समझ न सका। हारकर उसने अपनी आंखें बाबा भारती के मुख पर गड़ा दीं और पूछा, 'बाबाजी, इसमें आपको क्या डर है?'
सुनकर बाबा भारती ने उत्तर दिया, 'लोगों को यदि इस घटना का पता चला तो वे दीन-दुखियों पर विश्वास न करेंगे।' यह कहते-कहते उन्होंने सुल्तान की ओर से इस तरह मुंह मोड़ लिया, जैसे उनका उससे कभी कोई संबंध ही नहीं रहा हो।
बाबा भारती चले गए। परंतु उनके शब्द खड़ग सिंह मुंह पर थपक
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