Hindi, asked by chandrashekharkumar2, 11 months ago

साहित्यसंगीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीन:
| तृणम न खाद्यान्नपि जीवमान: तदभाग्धेयम परमं पशूनाम
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Answered by AnishaG
23
नमस्कार

आपका उत्तर-:

<b>भर्तृहरिरचित नीतिशतकम् से उद्धृत उक्त श्लोको का विषलेशण<b>

<b>साहित्यसंगीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः ।<b>

<b>तृणं न खादन्नपि जीवमानस्तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ॥<b>

<b>(साहित्य-संगीत-कला-विहीनः पुच्छ-विषाण-हीनः साक्षात् पशुः तृणम् न खादन् अपि जीवमानः, तद् पशूनाम् परमम् भाग-धेयं ।)<b>

<b>अर्थ – जो मनुष्य साहित्य, संगीत, कला, से वंचित होता है वह बिना पूंछ तथा बिना सींगों वाले साक्षात् पशु के समान है । वह बिना घास खाए जीवित रहता है यह पशुओं के लिए निःसंदेह सौभाग्य की बात है ।<b>

<b>धन्यवाद<b>

chandrashekharkumar2: Thanks
AnishaG: my pleasure ^-^
queen345: mark brainliest
chandrashekharkumar2: ok
Answered by queen345
5

sry

I'm unable to understand

साहित्यसंगीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीन:

| तृणम न खाद्यान्नपि जीवमान: तदभाग्धेयम परमं पशूनाम

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