Hindi, asked by bansalrajneesh36, 8 months ago

साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः
साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः
तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ।।2​

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Answered by rakhidubey62
42

Answer:

साहित्य, संगीत और कला से विहीन मनुष्य साक्षात नाख़ून और सींघ रहित पशु के समान है। और ये पशुओं की खुद्किस्मती है की वो उनकी तरह घास नहीं खाता।

Answered by BTXGamerzYT
15

Answer:

साहित्य, संगीत और कला से विहीन मनुष्य साक्षात नाखून औ सींघ रहित पशु के समान है। और ये पशुओं की खुकिस्मती है की उनकी तरह घास नहीं खाता।

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